Sunday, December 27, 2009

सलाह

(१)
एक बात को
दो बार मत कहना
अर्थ अलग लगाया जायेगा
पहले बार में सीखेंगे सब
दूसरी बार मजाक उड़ाया जायेगा
सार्थक सोंच तो
सार्थक बनी रहेगी
पर सार्थकता के अर्थ को
आजीवन छुपाया जायेगा
बड़ी ब्यर्थ अर्थ निकालेंगे
जब भी कुछ दुहराया जायेगा
एक बात को
दो बार मत कहना
अर्थ अलग लगाया जायेगा


(२)
मनुष्य जब भी सकारात्मकता
से उब जायेगा
अतीत के
समंदर में
वर्तमान डूब जायेगा
नासिका स्वास कहाँ ले पायेगी
हीनता फेफड़ों में
जगह बनाएगा
मस्तिष्क शुन्य करेगी
भविष्य की कामनाएं
हाँथ पावं मरे बिना
मनुष्य डूब जायेगा
मनुष्य जब भी सकारात्मकता
से उब जायेगा

Thursday, December 24, 2009

शब्दों के चित्र

जो चाहता था हुआ नहीं.जो हुआ पर्याप्त नहीं
आशा निराशा की इस गुत्थम-गुत्थी में जित किसी की नहीं
मानसिक लड़ाइयों में अंत की कामना करते हीं
स्थितियां नयी लड़ाई की पृष्ठ भूमि तैयार करता गया
कभी हार कभी जित चक्र बस चलता गया ..........


शब्दों का रंग
कागज पर पड़ते हीं
फिर से मै बन गया चित्रकार
और लग गया
भावनाओं का चित्र बनाने में
क्रंदन में एक पीलापन था
चित्रकार के इच्छा के बिपरीत
और काले रंग में उत्सव को गढ़ कर
सभी रंगों के शब्दों को देखा
उसके अर्थो से कोसों दूर
कई लकीरें खीचा
शब्दों से
सब तर्क बिहीन
पर धब्बों जैसे पसरे रंगों में
अर्थ ढूंढते आखों में
आशाओं का एक प्रतिबिम्ब था
चित्र जो भी शब्दों ने उकेरा
उसके रंगों में एक बंधन था
सब उलझे थे आपस में
क्रंदन, उत्सव
पीड़ा,हर्ष
पर भावनओं के चित्रण में
कम पड़ गए बीते वर्ष .

Tuesday, December 22, 2009

मीठी यादें गावं की

शहरी रंग बेरंग से
धूसर मिटटी गावं की
धुप शहर की शूल सरीखी
इच्छा आम के छाव की

हाय-हेलो की चकाचौंध में
स्पर्श बड़ों के पावँ की
अंग्रेजी के कावं-कावं में
मीठी बोली गावं की

शाम की बर्गर,रात की पिज्जा
पानी पूरी कोको कोला
दाल-भात में चोखा-चटनी
खाना मेरे गावं की

रिश्तों के भटकाव में
बचपन कुंठा पाल रहा
चाचा- चाची बुआ दादी
याद कराते गावं की

शहर के चौराहों पर
झूठी शान हजारों के
गावं में देखा है मैंने
कांख में चप्पल पावं की

च हु ओर एक शोर शराबा
तन्हा-तन्हा सारे लोग
एक तन्हाई मिल न पाई
खाख जो छाना गावं की

कुछ शहरी यादों में पाया
खारापन या एक दिखावा
शहरी होकर भूल न पाया
मीठी यादें गावं की

Tuesday, December 15, 2009

चक्कर में चक्कर

किसान को धुरी पर बैलों को घुमाकर धान से चावल के दाने तक आने में.
गेहूं को चक्की के पाट में डाल कर दादी को चक्की घुमाने में.
कुम्हार को चाक पर मट्टी डाल तन्मन्यता से बर्तन बनाने में
संतुष्टि अवश्य प्राप्त होती होगी सभी को ईश्वर के चक्र को दुहराने में.

सभी चक्र समय के चक्र जैसा परिणाम देकर ईश्वर की महत्ता प्रदर्शित करता है.
दिन-रात का चक्र भी प्रारंभ से दादी की चक्की जैसा चलता रहता है.
और इसी चक्र में जन्म-मृत्यु सहज घटित हो जाते हें
जन्म का उत्सव ,मृत्यु का शोक जन्म से मृत्यु तक हम जाने कितनी बार मानते हें.
और प्रत्येक प्रारंभ में एक अंत छुपा होता है.
चक्र के चक्रव्यूह में चक्कर अन्नंत होता है.
और इन्ही चक्रों को चलने में मनुष्य जन्म से जुट जाता है
चक्र पूर्ववत चलते रहते हें अंततः जीवन चक्र टूट जाता है.
और इन चक्रों को पुनः कोई और चलता है.
ईश्वर का सब चक्र किसान के बैलों के चक्कर, दादी की चक्की,कुम्हार के चाक
के जैसा या उसी रूप में चलता जाता है...............................

Saturday, December 5, 2009

रोटी-कपडा और मकान





हर सुबह की तरह आज भी चाय की दुकान पर शर्मा जी मिले थे ,लम्बी लम्बी बातों में एक छोटा सा आग्रह भी करते जा रहे थे की यादव जी से अच्छा उमीदवार इस बार नहीं मिलने वाला आप सभी उन्हें हीं वोट दीजियेगा,उनको जितने से अपने शहर का भाग्य पलट जाएगा और पता नहीं क्या क्या ......खैर लोकतंत्र है सबको कहने के अधिकार के तहत शर्मा जी को भी हक है अपनी बात कहने का
मुझसे गलती यही हो गयी की मैंने पूछ लिया की आप यादव जी की बड़ी तरफदारी कर रहें हें कुछ माल पानी मिला है क्या?
फिर क्या था पहले तो उन्होंने दूसरा कप चाय मुझे जबरजस्ती हाँथ में पकडाया और लगे समझाने अपने बारे में ...बड़ी भावुक होकर कहने लगे आज इतने दिनों से इस शहर में हूँ,अच्छे -अच्छे घुस वाले टेबल पर रहते हुए भी अपनी ईमानदारी को बचा कर रखा आपको क्यों लगता है की मैंने यादव जी से पैसा लिया है . इस शहर के नेताओं से मेरी जान पहचान है .यहाँ तक की आप मेरे ऑफिस में मेरे बारे में पता लगवा लें,मैंने कभी भी गलत तरीके से पैसा कमाना नहीं चाहा अगर कोई भी कह दे की शर्मा जी ऐसे हें तो आप जो कहें मै तैयार हूँ.
मैंने शर्मा जी से माफ़ी मांग लेना हीं बेहतर समझा मेरी इच्छा उनको दुखी करने का नहीं था.मुझे भी पता था शर्मा जी वास्तव में एक अच्छे इन्सान हें.
मैंने उनसे आग्रह किया की आप लोगों के दर्द को समझते हें, इमानदार हें,लोगों में आपकी अच्छी पहचान भी है, राजनीति की पकड़ भी है, आप अपने को एक नेता के रूप में क्यों नहीं ढालते.सच मानिए सारे पढ़े लिखे लोगों का वोट आपको हीं मिलेगा और मुझे उम्मीद हीं नहीं पूर्ण विश्वास है की आप अपने शहर के विकास के लिए सबसे योग्य नेता होंगे.
शर्मा जी लम्बी सांस भरते हुए,नहीं साहब राजनीति हम लोंगों के लिए कहाँ.......
रोटी कपडा मकान के मुद्दों से जहां अपना समाज वंचित है वहां अलग अलग मुद्दों पर विकास लाने की बात मुझसे नहीं होने वाली
मैंने शर्मा जी से पूछना ज़रूरी समझा , क्या अपने यादव जी एक अच्छे नेता हें?.
शर्मा जी झेपते हुए इतना हीं कह पाए
जनाब इलेक्शन से पहले के कुछ दिन अजीब होतें हें.
गुंडों से दिखने वाले नेताओं को भी हाँथ जोड़े होडिंग्स पर देखने में मज़ा तो आपको भी आता हीं होगा मगर आँखों की ठंडक कानों में पड़ने वाली आवाजों से गायब भी हो जाती होगी.मुद्दों के समंदर में जनता भी अपने रोटी,कपडा,मकान की जरूरतों को सुलझाने में खुद को बिफल महसूस करती है मगर नेताओं को क्या फर्क पड़ता है, कई नेताओं में यादव जी भी हें
वो क्या करेंगे ये तो उन्हें भी नहीं पता मगर
नेता जी को जितना तो होगा हीं भले हीं वादों की बाढ़ में हम सब प्यासे हीं रह जाएँ.

दो कप चाय और एक टुक शर्मा जी की बात मेरी नींद उड़ाने को काफी थे .

Friday, December 4, 2009

आप भी किसी की बदनामी करने का सोंच रहे है तो कृपया इसे ज़रूर पढ़ें

आज मुझे एक बहुत पुरानी कहानी याद आती है जिसे मेरे बचपन में किसी फेरी वाले अंकल ने सुनाया था.मुझे ठीक से याद नहीं की उन्होंने ये कहानी क्यों और किसके लिए कहा था जब माँ आस पड़ोस के औरतों के साथ दरवाजे पर फेरी वाले अंकल से कुछ खरीद रर्हीं थी.
बाज़ार में काफी भीड़-भाड़ के शोर में अचानक तेज़ी आने से लोगों की भीड़ एक जगह पर जमा होने लगीधीरे-धीरे चर्चा होने लगी की एक चोर शायद किसी दुकान से कुछ चोरी करने के दौरान पकड़ा गया है.जितने लोग उतने बातों के बीच कहनी में हिंदी फिल्मों का टेस्ट आने लगा था. इसी बीच चोर की पिटाई भी रह रह कर हो रही थी.चोर अपने उपर आई मुसीबत को जैसे तैसे झेल रहा था.तभी पुलिस की गाड़ी आते देख भीड़ में हडबडाहट आ गयी.चोर भी मन ही मन खुश ज़रूर हुआ होगा की जनता की बिना नाप -तौल की पिटाई से पुलिस की पिटाई सहने लायक होगी
अब जो होना था हुआ,दो चार थप्पड़ दस बारह गन्दी गालियों से चोर साहब का स्वागत किया गया. हाँथ में हथकड़ी रस्सा लगा कर चोर को पुरे बाज़ार में घुमाने की तैयारी जोर शोर से होने लगी .चोर भी अपने अपमान से डरता दिख रहा था मगर तीर कमान से निकल चूका था.
आधे घंटे के ड्रामे के बाद चोर,पीछे घुमने वाले लोग,पुलिस सभी बुरी तरह से थक चुके थे.चोर साहब को भी बैठने की इज़ाज़त मिल गयी.बाज़ार के लोग भी इस तमाशे का आनंद लेने का कोई मौका गवाना नहीं चाहते थे.चोर साहब भी बुरी तरह से अपने ऊपर किये अपमान को हजम नहीं कर पा रहे थे.
बाज़ार के लीगों में जहाँ चोर की मजेदार कहानी मनोरंजन का कारण बना हुआ था वहीँ चोर अपनी बदनामी का बदला लेने के लिए एक मौका के तलाश में लगा था . इसी बीच एक व्यक्ति जो चोर को बार बार अपनी टिपण्णी से दुखी कर रहा था चोर के बनावटी मुस्कराहट को समझ नहीं पाया.पुलिस भी चोर की मुस्कराहट का अर्थ जानना चाहती थी.दो चार भद्दी गली देकर जब पुलिस ने पूछा तो चोर ने कहा "हाकिम मै दोस्ती पर हस रहा हूँ " पुलिस को कुछ समझ नहीं आया ,दो चार गाली पड़ने पर चोर ने कहा " जनाब मै तो चोरी करते पकड़ा हीं गया हूँ मगर मैंने अपने साथी का नाम नहीं लिया क्यों की मुझे दोस्ती का अर्थ समझ में आता है,मगर मेरा दोस्त जो इस चोरी में साथ था वो मुझे फसा देना चाहता है कयोंकि सुबह से जो हम दोनों ने चुराया उसका हिस्सा उसे मुझे देना न पड़े .मगर जनाब आप मुझे जान से मार भी दोगे तो मै उसका नाम नहीं लूँगा क्यों की मुझे दोस्ती निभाना आता है.अब तो पुलिस भी सकते में आ गयी दो चार थप्पड़ देने पर चोर ने अपनी अंगुली उस व्यक्ति के तरफ कर दिया जो बहुत देर से चोर के अपमान का नया नया तरीका ढूंढ़ रहा था
कहानी का अंत यहीं नहीं होता है आगे क्या हुआ होगा आप भी अंदाज़ा लगा सकते हें.


सावधान कहीं आपके साथ ऐसा न हो जाए.

कुछ तो लोग कहेंगे




पुरानी धुन सुना तो ऐसा लगा की मेरे मन की छुपी बात को हीं गायक ने दुहराया है
कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना...............
आज पड़ोस के अंकल ने मुझसे कई साल बाद पूछ हीं लिया की मुझे अंकल क्यों कहते हो भैया कहा करो.
मेरा मन खुश था की मुझे अपने आस पास के लोग नोटिस तो करने लगे नहीं तो पहले कभी ऐसा कहाँ हुआ था की बचपन से जिन्हें देख कर बड़ा हुआ वो मुझसे रिक्वेस्ट कर के बात करे. आज मै अंकल को अंकल नहीं भैया कह कर अंपने बड़े होने पर गर्ब कर ही रहा था की आंटी पर नज़र पड़ गयी.आखे गोल कर अभी सोंच हीं रहा था की अंकल तो अभी अभी भैया बन गए अब आंटी को भाभी कह देने पर कोई सामाजिक परेशानी तो नहीं हो जाएगी...
कई बिचारों से गुजरते हूए इसी नतीजे पर पहुँचा की आंटी से हीं पूछ लेना बेहतर होगा,आंटी को थोड़ी देर पहले की बात बताने पर आंटी को गंभीर होते देख यही महसूस हुआ की आज मेरी, नहीं तो अंकल की सामत आई है.
अभी अभी माफ़ी मांगने वाला था की आंटी ने इतना कहा की मुझे मोहल्ले के लडको से भाभी सुनना बिलकुल पसंद नहीं,ऐसा करो तुम मुझे दीदी कह लिया करना.मै मन हीं मन सोंच रहा था की अजब उलझन है अंकल भैया हूए तो हूए आंटी दीदी बन कर रिश्तों के समीकरण में भूचाल लाने पर क्यों तुली हें.चलिए दुनिया तो हर हाल में मुझे अनाप सनाप कहेगी हीं .भले हीं रिश्तों में कोई तालमेल नहीं पर अंकल भैया आंटी दीदी के बीच में सोनू मोनू जो कल तक मुझे भैया कहते थे अब मुझे क्या कहेंगे????
अंकल के भैया सुनने की लालसा ने मुझे सोनू मोनू के भैया से अंकल बना डाला...

मै अपने को इस बात से मनाता रहा की

कुछ तो लोग कहेंगे .................................

Thursday, December 3, 2009

कल की तैयारी



मुझे हमेशा लगता रहा है,जहाँ चाह वहीँ राह मगर आज थोडा विश्वाश डगमगाया सा लगा.
अपने ऑफिस के काम से आज जितने लोगों से मिला उनमे एक भी मुझे अपनी बात कहने में मदद करते नहीं दिखे .निराश मुझे होने की ज़रूरत नहीं थी मगर निराशा दूर से मुझे ललचाती रही.एक उम्मीद की किरण तब नज़र आई जब अपने अतीत में गया,लगा की नया क्या हुआ है,पहली बार जब घर से निकला था तब भी तो बहार की दुनिया समझ नहीं आई थी.फिर भी मैंने आगे की तरफ भागना जारी रखा था और एक मुकाम बनता गया. निराशाएं आशाओं की चादर ओढती गयीं अंधकार को प्रकाश में बदलने वाला भी मै हीं था जब भी निराशाएं मन पर हावी हुईं.
आज फिर लगा की हार जीत मन का खेल है मन को डूबने मत दो और हर हार को जीत में बदलते जाओ.
कल फिर आएगा नए उम्मीद के साथ ,एक नयी शुरुआत के लिए तैयार रहना होगा .आज भले मेरा दिन नहीं था मगर कल मेरा होगा अगर आज की गलतियों को मै कल न करूँ तो.

ख़ुशी के पल



आज मेरे मन की मुराद पूरी हो गयी . मेरा अपना एक ब्लॉग है जो मेरे मन को आपके सामने लाने में मदद करेगा . कई दिनों से इच्छा थी की ऐसा हो , और आज पूरी पाकर खुश हूं.