Wednesday, February 24, 2010

आपका नाता आपके प्रतिद्वंदी से क्या है? थोडा सोंचिये.

संबंधों की इस दुनिया में
रिश्ते नाते जाने कितने
हर नातों के कितने नातें
नातों के भी कितने गांठें
उन सब में एक और है नाता
ता उम्र जो संघ चलता है
प्रतिद्वंदी बन वो जो कहता है
कर्मों का है प्रतिध्वनि होता है
लाख नकारे मन फिर भी
प्रतिद्वंदी सदेव संघ रहता है ........

------प्रतिद्वंदी------

मै उसे समझता रहा
और वो मुझे
मै उसपर हँसता रहा
और वो मुझपर
मै उसमे खामियां धुन्धता रहा
और वो मुझमे
मै उसके मार्ग का अवरोध रहा
और वो मेरे
मै उसके सफलता को रोकने में जुडा रहा
और वो मेरे
मै उसके मार्ग भूलने पर उत्सव मनाया
और उसने मेरे
बुरे रूप में हीं वो मेरे मन मष्तिस्क पर छाया रहा
और शायद मै उसके
इसी आपाधापी में
मुझे उसकी असफलता से प्रेम हो गया

और मेरी असफलता से उसे
अब तो आदत हो गयी है उसे देखने की
और उसे भी यही लत है
अब जीवन के इस पड़ाव पर
मुझे उसके मृत्यू का इंतज़ार है

और उसे मेरे..

-----अरशद अली----

Saturday, February 20, 2010

चाय के साथ सिगरेट पीने वालों के लिए सन्देश

अब जरा मिजाज़ हल्का किया जाए ..
बहुत हुआ मरने मारने की बात शायद आपको इल्म हो एक नया बलोग " उम्मीद " जो राजवंत दीदी ने शुरू किया है ने मेरे पिछले पोस्ट पर एक टिपण्णी दिया था की भाई ज़िन्दगी की बात करो ...तो चलिए ज़िन्दगी की बात करते है .
सिगरेट पीना स्वस्थ के लिए हानिकारक है ये बात किसे नहीं पता ...मगर मानता कौन है .आप ऐसा बिलकुल मत समझियेगा की मै कोई नसीहत देने वाला हूँ ..सिगरेट के डब्बे पर कोई कुछ भी लिख दे या बिच्छु बना दे तो लोग थोड़े मानने वाले हें.मै भी नहीं मानता आप भी मत मानो.

बस इसी मन्त्र के साथ दोस्तों ने आज चाय के साथ सिगरेट पिने की इच्छा जताई .ऑफिस के कामों को लटका कर हम तीनो निकल पड़े चाय की दुकान के तरफ .इतफाक कह लीजिये या हमारी किस्मत ,चाय की दुकान जहाँ भीड़ रहा करती थी बिलकुल खाली था..ख़ाली दुकान में मनचाहे स्थान पर बैठ कर चाय पिने का आनंद अलग है और यदि साथ साथ सिगरेट पीना हो तो खतरा भी कम..नहीं तो जाने कौन सा दुश्मन आपके घर ये खबर पहुंचा दे की आपके साहबजादे सिगरेट पिने लगें हें.चाय का आर्डर दिया चाय हाज़िर ..अब सिगरेट मंगवाना था आसन यही था की चाय वाले को हीं कहा जाए की सिगरेट ला दे .एक दस का नोट दिया दो सिगरेट मंगवाया ..यहाँ तक सब ठीक ठाक था मगर सुदामा (वही चाय वाला) जाने क्या बडबडाते हुए हमलोंगों के पास आया सिगरेट टेबल पर रखा और तीन रूपया वापस कर अपने चूल्हे के तरफ बढ़ गया ...उसकी बडबडाते रहने की पुरानी आदत है मुझे ये मालुम है..मैंने बड़े प्यार से पूछा .क्या बात है कुछ कहना चाहते हो तो कह दो ..मन हीं मन क्यों कुढ़ रहे हो..

नहीं साहब बात ऐसा कुछ नहीं है की चिंता की जाए मगर आप पूछ रहे है तो बतलाये देते हें..

साहब जी आज दस से ज्यादा बर्ष हो गए यहाँ चाय बेचते हुए मुझे यही लगता था की मेरी तीन रूपए की चाय हीं सबसे महंगी चीज है ..मगर साहब सिगरेट तो साढ़े तीन रुपये का एक मिलने लगा है ..हम तो दूध.चीनी,चायपत्ती,पानी मिला कर तीन रूपया में एक कप चाय देते है मगर ई सिगरेट की भी किस्मत देखिये ससुरा तम्बाकू है कागज़ में लपेट कर साढ़े तीन में बिकने लगा है ...और साहब आप लोग भी बड़े शोख से पीते हें चाय को भी और इस सिगरेट को भी कभी कभी शिकायत भी लगा देते हें की आज चाय अच्छा नहीं बना है मगर सिगरेट तो साफ साफ ज़हर है पर उसकी कहीं शिकायत भी नहीं होती ..यही सब सोंच रहा था साहब ..चलिए जाने दीजिये ...हमरा तीन रुपैया का चाय का क्या औकात जो सिगरेट से कुश्ती करे.ऐसे भी चाय ,सिगरेट ये सब चीजें नवाबों की पहचान है नहीं तो गरीबों को दो जून रोटी मिल जाए वही बहुत बड़ी बात है चाय,सिगरेट कौन पूछता है ..सुदामा बस बोलते चला जा रहा था और हम सुनते इसी बिच कभी टेबल पोछता कभी गिलास धोने लगता ..मगर उसके मन के उथल पुथल साफ़ थी..मै अच्छी तरह जानता था की सुदामा जो कहना चाहता है वो कह नहीं रहा है और जो कह रहा है उससे वो संतुस्ट नहीं ...मैंने इतना हीं कहा सुदामा तुम कहना क्या चाहते हो?

नहीं साहब मै क्या कहूँगा बस यू हीं अपने उपर हंसी आ रही है मै सोंचता था की मै चालक हूँ ,दूध में पानी मिला मिला कर चाय बेच कर मकान बना लूँगा मगर कहाँ बना पाया पर साहब ई सिगरेट की जितनी भी कंपनी है न वो तो सुदामा से भी चालक निकली सबकी चाँदी है ...मगर एक बात तो है साहब मै किसी के साथ खिलवाड़ तो नहीं करता चाय हीं पिलाता हूँ न पर ई सिगरेट तो जीवन बर्बाद कर रही है.मै आपको सिगरेट पीने से मना नहीं करूँगा मगर इतना तो ज़रूर कहूँगा की सिगरेट जब भी पीजिएगा तो मेरे यहाँ एक कप चाय जरुर पीजिएगा काहे की मेरा घर इसी से चलता है.

अंत तक सुदामा यूं हीं बडबडाता रहा मगर हम दोस्तों को ना कहते हुए भी एक बात बतला गया ....
आप भी समझ गए होंगे सुदामा क्या कहना चाहता था.

ये हुई ज़िन्दगी की बात ....क्यों हुई ना

--अरशद अली--

Friday, February 19, 2010

एक सत्य (कविता)

उम्र के हिसाब से ये कविता मुझे नहीं लिखनी चाहिए थी मगर मुझे नहीं पता मैंने ऐसा क्यों सोंचा और कैसे कैसे ये कविता कागज पर उतर आये...

एक सत्य

मृत्यू सत्य है,डर जाओगे
तुम भी एक दिन मर जाओगे
बचपन के डर को मरते देखा
फिर बचपन को मरते देखा
युवा में सब नया नया सा
कुछ बर्षों तक साथ रहा था
इच्छाओं को मरता पाकर
अपनी जवानी मरते देखा
फिर प्रोढ़ हुआ जिमेदारी आई
हर शौख को मारा फ़र्ज़ निभाई
हर फ़र्ज़ को पूरा होते पाकर
हर सफ़र यूं हीं ठहरते देखा
फिर खुद को खुद से डरते देखा
इस सत्य से तुम भी डर जाओगे
तुम भी एक दिन मर जाओगे .


--अरशद अली--

Friday, February 12, 2010

यदि आप लड़की के पिता हें तो शर्मा जी वाली भूल मत कीजियेगा (एक अनुरोध)

आज शर्मा जी चाय की दुकान पर नहीं आये .कल हीं बतला रहे थे की बेटी के ससुराल जाना है,शादी को एक वर्ष भी नहीं गुजरा और लेन-देन को लेकर ससुराल वालों की प्रताड़ना शुरू हो गयी.शायद कुछ समझौता करना पड़े.कोई रास्ता तो निकलना होग अन्यथा बेटी को कुछ दिनों के लिए बिदाई करवा लूँगा.
मुझे याद है शर्मा जी अपनी बच्ची की शादी तय करके आये थे तो बहुत प्रशन्न थे.चाय सूदुकते हुए पूछने पर उन्होंने बतलाया की लड़का इंजिनियर है,एक नामी कंपनी में अच्छे पैसे पर जॉब करता है परिवार भी पढ़ा लिखा है. लेन-देन के बिषय में प्रश्न करने शर्मा जी थोड़े खीजे-खीजे से दिखे.कहने लगे लड़की वालों पर तो लेन-देन का बोझ होता हीं है.
मुझे थोडा आश्चर्य हुआ कयोंकि कभी शर्मा जी ने हीं कहा था,जिस घर में लेन-देन के आधार पर शादी के बात होती हो उस घर में बेटी नहीं ब्याहुंगा .मै मन हीं मन शर्मा जी की दल-बदल निति के कारणों पर मंथन प्रारंभ करना चाहा तो,शर्मा जी ने फैली चुप्पी को तोड़ते हुए कहा,जनाब मै आपके अन्दर के उथल पुथल को अनुभव कर रहा हूँ.
आप यही प्रश्न करना चाहते हें न की मै लेन-देन प्रथा को क्यों बढ़ावा दे रहा हूँ.
मै हामी भरते हुए उन्हें सुनने के लिए तैयार हो गया.
आपको तो मेरी सुलेखा के बिषय में जानकारी तो है हीं उसके जन्म से अब तक मुझे उसके पिता होने का गर्व रहा है .उसके बी .ऐड होने के बाद से एक अच्छा वर तलाश रहा हूँ और यह तलाश अन्य लड़की वालों को भी होता है,फलस्वरूप अच्छे लड़के की खरीद का चलन अपने समाज का प्रचलन हो गया है.परन्तु मैंने लेन-देन पर सहमती नए जोड़े का घर बसाने के उद्देश्य से किया है.इसे अपनी बच्ची के घर बसाने में मेरे द्वारा अंशतः आर्थिक सहयोग माना जाए न की ये समझा जाए की मैंने पैसे की बल पर अपनी बच्ची की शादी कर रहा हूँ.मैंने शर्मा जी पूछा,क्या लेन-देन आपकी सहमती से तय हुआ है अन्यथा आपपर एक दबाव डाला गया है.यदि बच्ची की शादी से सम्बंधित आर्थिक लेन -देन में आपकी इच्छा सम्मलित है तो इस बिषय पर मुझे भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए .परन्तु यदि यह एक दबाव है तो मै आपको पुनः चिंतन करने का आग्रह करूँगा.
शर्मा जी लम्बी साँस भरते हुए बहुत भाऊक होकर कहने लगे,समाज के रीती रिवाजों में जहाँ कई अच्छी प्रथाओं ने भारत के संस्कृति को एक ऊंचाई दी है वहीँ कुछ प्रथाओं से बुराइयों का जन्म भी हुआ है.मुझे भी नहीं पता की मैंने लड़के वालों की मांग ख़ुशी से,मज़बूरी में या एक अच्छे लड़के के हाँथ से निकल जाने की डर में दे रहा हूँ.परन्तु एक बात तो सच की मुझे भी डर लगता है,ऐसे लोगों से जो लड़की के गुणों को देखने से पहले लड़की वालों से एक टुक लेन- देन की बात करना ज़रूरी समझते हें. रहा सवाल पुनः चिंतन की तो अंत तक मै हाँथ मलता रह जाऊँगा.
दस-बारह लाख खर्च करने के बाद भी लड़की सुखी रहे तो मै गंगा नहा लूँगा.
मैंने शर्मा जी को सहानुभूति स्पर्श देते हुए इतना हीं कह पाया की आप चिंता ना करें सब कुछ अच्छा रहेगा.
आज मै यही सोंचता हूँ की उस दिन के शर्मा जी ज्यादा मजबुर थे या आज कल के शर्मा जी.
चिंतन उसी समय कर लिया गया होता तो शायद आज पुनःचिंतन की आवश्यकता नहीं होती

क्यों चिंतन की आवश्यकता नहीं लगती आप सभी लड़की वालों को .

--अरशद अली ---

Tuesday, February 9, 2010

कुछ तो लोग कहेंगे




पुरानी धुन सुना तो ऐसा लगा की मेरे मन की छुपी बात को हीं गायक ने दुहराया है
कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना...............
आज पड़ोस के अंकल ने मुझसे कई साल बाद पूछ हीं लिया की मुझे अंकल क्यों कहते हो भैया कहा करो.
मेरा मन खुश था की मुझे अपने आस पास के लोग नोटिस तो करने लगे नहीं तो पहले कभी ऐसा कहाँ हुआ था की बचपन से जिन्हें देख कर बड़ा हुआ वो मुझसे रिक्वेस्ट कर के बात करे. आज मै अंकल को अंकल नहीं भईया कह कर अंपने बड़े होने पर गर्ब कर ही रहा था की आंटी पर नज़र पड़ गयी.आखे गोल कर अभी सोंच हीं रहा था की अंकल तो अभी अभी भईया बन गए अब आंटी को भाभी कह देने पर कोई सामाजिक परेशानी तो नहीं हो जाएगी...
कई बिचारों से गुजरते हूए इसी नतीजे पर पहुँचा की आंटी से हीं पूछ लेना बेहतर होगा,आंटी को थोड़ी देर पहले की बात बताने पर आंटी को गंभीर होते देख यही महसूस हुआ की आज मेरी, नहीं तो अंकल की सामत आई है.
अभी अभी माफ़ी मांगने वाला था की आंटी ने इतना कहा की मुझे मोहल्ले के लडको से भाभी सुनना बिलकुल पसंद नहीं,ऐसा करो तुम मुझे दीदी कह लिया करना.मै मन हीं मन सोंच रहा था की अजब उलझन है अंकल भैया हूए तो हूए आंटी दीदी बन कर रिश्तों के समीकरण में भूचाल लाने पर क्यों तुली हें.चलिए दुनिया तो हर हाल में मुझे अनाप सनाप कहेगी हीं .भले हीं रिश्तों में कोई तालमेल नहीं पर अंकल भैया आंटी दीदी के बीच में सोनू मोनू जो कल तक मुझे भैया कहते थे अब मुझे क्या कहेंगे????
अंकल के भैया सुनने की लालसा ने मुझे सोनू मोनू के भैया से अंकल बना डाला...

मै अपने को इस बात से मनाता रहा की

कुछ तो लोग कहेंगे .......................

--अरशद अली --

Tuesday, February 2, 2010

एक तुम हो जो निश्चिंत हो दुनिया के भीड़ में गुम

कल माँ की अचानक तबियत ख़राब होने के कारण उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा..
कल दिन भर एक मायूसी छाई रही... कई बार सोंचा चिंता न करूँ सब ठीक हो जायेगा मगर चिंताएं दस्तक कहा देती धडधडाते हुए
मन मस्तिस्क पर छाती रही...
ऐसे तो मै चार भाई बहनों में तीसरे नंबर पर हूँ मगर माँ ने मुझे जयादा प्यार दिया क्यों की भैया भाभी और दोनों बहने मुंबई में अच्छी तरह से सेटल हें..और मै माँ के साथ बोकारो में ..शायद यही वजह है माँ से ज्यादा प्यार पाने का..
भैया भाभी बहन बहनोई सभी मेरे बिवाह को लेकर प्रतेक दिन फ़ोन पर दो चार चर्चाएँ कर हीं लेते हें ..खैर

हॉस्पिटल में माँ को नींद का इंजेक्सन दिया गया था और वो एक कृतिम नींद के आगोश में सो रही थी.माँ अगर जागती रहती तो मेरा समय कट जाता मगर मुझे अपने समय को बिताने के लिए कुछ करना था ...

मुझे लगा अपनी चिंताओं से बहार आने का सबसे अच्छा साधन यही है की मै उसके बिषय में सोंचू जिससे मेरा बिवाह होगा ..
ये अलग बात है की मेरा बिवाह किसके साथ होगा ये भविष्य के गर्भ में छुपा है ..

इन्ही सोंच में कुछ शब्द पंक्तियों में एवं पंक्तियाँ कविता का रूप धारण करती गयी ....

आपके सामने है मेरी वो कविता जो शायद मेरी पत्नी (जिन्हें मै जनता भी नहीं ) के लिए लिखी गयी पहली कविता है.

एक तुम हो
जो निश्चिंत हो
दुनिया के भीड़ में
गुम..
एक मै हूँ
मेरी कल्पनाएँ
और उन कल्पनाओं में
तुम

एक तुम हो
जो खा जाती हो
मेरे हिस्से के
काल्पनिक
दुखों को
एक मै हूँ
जो हर सुख में
तुम्हारा हिस्सा
रखता हूँ..

एक तुम हो
जो सजाते हो
किसी के आने की
ख़ुशी में
शहर को
एक मै हूँ
जो तलाशता हूँ
सदेव
तुम्हारे घर को..

एक तुम हो जो
नए राग में
मिल जाते हो
और मै सर धुनता हूँ
एक मै हूँ
जो हर पग पर
रुक कर
तुमको सुनता हूँ...

एक तुम हो
रंगों से बेपरवाह
खोये रहते हो
अपनी दुनिया में
एक मै हूँ
जो गुलाबों से
रंग चुराता हूँ
तुम्हारे चूड़ियों को
रंगने के लिए...

एक तुम हो
जो निश्चिंत हो
दुनिया के भीड़ में
गुम..
एक मै हूँ
मेरी कल्पनाएँ
और उन कल्पनाओं में
तुम..


मेरी जीवन संघनी इसे पढ़ कर कैसा महसूस करेंगी..
अगर आप इसका अंदाज़ा लगा पा रहें हों तो मुझे अवश्य बताइयेगा ..

माँ के लिए आप सभी के दुआ के जरुरत है...

--अरशद अली---