Friday, April 29, 2011

बेवकूफ पत्नी से डरना चालाक पतियों की चतुराई है.........अरशद अली

शर्मा जी आधुनिकता का मजाक उड़ा रहे थे.
आँखे गोल-गोल नचा रहे थे

तभी फोन घनघना गया
भरी मीटिंग को एक कॉल खा गया

फोन उठते हीं मिसेज शर्मा ने नमस्कार किया
अनमने ढंग से शर्मा जी ने नमस्कार सिव्कार किया

पत्नी का एक तुगलकी फरमान आया था
शाम में बच्चों को घुमाने ले जाना है,याद कराया था

मैंने पूछा

मिसेज शर्मा तो बड़ी शालीनता से बात कह गयीं

शर्मा जी कहे,

पत्नी की शालीनता एक तरह की शामत है.....
कहते हीं शर्मा जी चुप हो गए

पूछा विषय तो अच्छा चुना है,मौन क्यों धारण कर गए

शर्मा जी कहे,

जैसे वाक्य कहा पत्नी का ख्याल आ गया
अच्छा आप भी अन्य पतियों की तरह ,पत्नी से डर गए

कौन कहता है ,सारे पती डरते हैं
पत्नी तो डराने के लिए हीं बनी है

मगर चालाक पती तो डरने का नाटक करते हैं

पूछा ,चलिए नाटक हीं सही
अब इस नाटक का कारण तो बतलाइये

शर्मा जी ने कहा,

शादी के बाद हर शेर को सवा शेर मिल जाता है
हेकड़ी पती करे या पत्नी,चोट तो पती को हीं आता है

अतः पत्नी के दहाड़ का उत्तर मिमिया के देने में भलाई है
बेवकूफ पत्नी से डरना चालाक पतियों की चतुराई है

चलिए बात को यहीं बिराम देता हूँ
पत्नी ने जल्दी बुलाया है इसी बात पर ध्यान देता हूँ

अन्यथा इस बात पर पत्नी को चिल्लाना होगा
खामखा मुझे उसके सामने फिर से मिमियाना होगा...



---अरशद अली---

Saturday, April 9, 2011

स्त्री भुर्ण हूँ मारी जाउंगी थोडा मुझपर दया करो------------अरशद अली

एक विनय जीवन देने की माँ तुमसे है ध्यान धरो
स्त्री भुर्ण हूँ मारी जाउंगी थोडा मुझपर दया करो


संवेदनाओं को झंझोड़ देने वाली ये याचना अभी भी हो रही है...और अभी भी मानवता की हत्याएं निरंतर है

एक संवाद उस माँ से जो इस हत्या में शामिल थी (पुर्णतः या अंशतः )

माँ राह तुमने हीं खो दिया
अन्यथा इतना विलाप क्यों होता
मेरे जन्म के अनुरोध को
माँ तुमने भी अवरोध किया
अन्यथा इतना विलाप क्यों होता

क्रंदन पत्थर ह्रदय को पिघला दे
मैंने भी तो रोया था
माँ तुमने मानव धर्म,
मैंने जीवन हीं खोया था ...........

क्यों मूक हो माँ ?? जवाब दो ....
माँ तुमने बिरोध क्यों नहीं किया?? जवाब दो....
मुझे उत्तर चाहिए......


----अरशद अली-----

Monday, April 4, 2011

मुझे मेरी माँ दिखती है ............अरशद अली

कोई आधार ढूंढे तो
मुझे मेरी माँ दिखती है
मुझमे संस्कार ढूंढे तो
मुझे मेरी माँ दिखती है

मेरे चेहरे की हर खुशियाँ
मेरे अन्दर का एक इंसा
गढ़ा है खुद को खोकर जो
मुझे मेरी माँ दिखती है

कोई ढूंढे तो क्या ढूंढे
इस दुनिया में एक नेमत को
बहुत साबित कदम हरदम
मुझे मेरी माँ दिखती है

अजान के बोल से जगती
लिए मुस्कान ओंठो पर
शुबह से शाम तक चंचल
मुझे मेरी माँ दिखती है

दिया हिम्मत ज़माने में
रुका जब भी थक कर मै
जब कोई राह नहीं दिखता
मुझे मेरी माँ दिखती है

रिश्तो के चेहरों में
शिकन आ हीं जाते हैं
जो बदले नहीं कभी
मुझे मेरी माँ दिखती है ..


अरशद अली