पुत्र ने पिता से पूछा,
पापा मुनाफा किसे कहते हैं?
पिता ने सरलता से कहा,
कोई बस्तु कम कीमत का हो
और अधिक मूल्य में बीक जाता है
तो जो अतिरिक्त धन प्राप्त होता है
वही मुनाफा है.
पुत्र ने कहा,
तब तो मुझे मुनाफा कमाना आ गया
असल में चौकीदार को आपका जूता भा गया
कल आप मम्मी पर जूते को लेकर
चिल्ला रहे थे
तुम्हारे बाप का दिया दहेजुआ जूता
एक कौड़ी का है बतला रहे थे...
मैंने उसी एक कौड़ी के जूते को
चौकीदार से 20 रूपया में बेच दिया हूँ
और एक कौड़ी के जूते पर
कई रूपया मुनाफा लिया हूँ
पिता ने कहा,
मुर्ख के बच्चे
वो जूता तो तुम्हारी माँ से
लड़ने का एक बहाना था..
उसे हीं बेच कर तुम्हे मुनाफा कमाना था?
जरुर तुम्हारी माँ ने ये सिखलाया होगा
तुम्हारे हाथ से उसी ने जूता बिकवाया होगा
पुत्र बोला,नहीं -नहीं
चौकीदार कुछ दिनों से नंगे पाँव
काम पर आ रहा था
कल देखा वो थोडा लंगड़ा रहा था
पूछने पर कहा ...
छोटे साहब जूता कहीं ग़ुम हो गया
2nd हैण्ड खरीदने के लिए भी पैसा कम हो गया
तभी मुझे आपके जूते बेचने का ख्याल आया
मेरे इस व्यवसाय को माँ ने नहीं सिखलाया
पिता ने कहा,
माँ के पक्षधर ,तुम्हारे इस व्यवसाय में
मुनाफा नहीं घाटा है
आज कल 2nd हैण्ड जूता भी 200 में आता है
सुनते हीं पुत्र ने पुनः एक प्रश्न दागा...
मुनाफा कैसे घाटा बन जाता है ?
और ये घाटा किसे कहा जाता है ?
पिता ने कहा,
इस प्रश्न का उत्तर ना हीं जानो तो अच्छा है
शादी से पहले तुम्हारी माँ मुनाफा,
शादी के बाद घाटा..
और इस घाटे का चक्रब्रिधि-ब्याज
तुम्हारे जैसा बच्चा है