Sunday, December 23, 2012

मैंने एक अंधे से पूछा ...... तुम देखते कैसे हो ?


मैंने एक अंधे से पूछा,
तुम देखते कैसे हो ?

अंधे ने कहा ...
छोडो देखता कैसे हूँ ,
ये बताओ देखना कैसे है ?

यदि आँखों  से देखना होता है तो 
लोंगों  की आँखों से देखता हूँ 
मगर इससे चीजें धुंधली दिखती है 
और यदि साफ़ देखना होता है तो 
अपनी अनुभवों से देखता हूँ 
इसके अलावा कभी-कभी स्पर्श से 
कभी-कभी पुरानी यादों से 
और कभी -कभी आवाज़ भी देखने में मदद करतीं हैं।

मैंने कहा, मै  समझ नहीं पाया 
अंधे ने तुरंत पूछा,
आप समझते कैसे हैं ?

मैंने कहा ये कैसा सवाल है?
इसका उत्तर तो तुम भी जानते हो ...
अंधे ने कहा ...हाँ जनता हूँ 
मगर देखना चाहता हूँ कि  आप 
समझने के कौन से तरीके को स्वीकार करतें हैं
और मेरे इस देखने की क्रिया में 
आपके  शब्द मददगार होंगे।

आप जो भी कहेंगे वो मेरे ज़ेहन में 
एक तश्वीर बनाएगा 
और मै  जान जाऊंगा स्थितियों को 
जो आप देख कर जानते हैं।

मैंने पूछा,
तुम अंधे होकर भी देख लेते हो तो 
तुम्हारे अंधे होने से क्या फर्क पड़ता है?

अंधे ने धीरे से कहा .....
फर्क  मुझे नहीं पड़ता,फर्क  तो आँख वालों को पड़ता है 

कुछ सहानुभूति दिखाते  हैं ,कुछ घृणा करतें हैं 
कुछ अफ़सोस जतातें हैं,कुछ मजाक उडातें हैं
और मै  देख लेता हूँ अंधे होने के बावजूद 
उनके विविध व्यवहार को 
और फर्क उन्हें हीं पड़ता है ,मुझे नहीं।

मै  सन्न रह गया ............

अंधे ने थोड़ी देर बाद कहा ....
साहब, पांचो ज्ञानिन्द्रियाँ चरम उपलब्धी  नहीं ....
यदि ज्ञानिन्द्रियों पर नियंत्रण ना हो तो
पूर्ण होना अनिवार्य नहीं ..
पूर्णता अनुभव  करना ज्यादा अनिवार्य है।

मुझे आँख नहीं मगर देखने का सूछ्म ज्ञान है
वहीँ कई आँख वालों को आँख होते हुए भी ....
 देखने का सूछ्म ज्ञान नहीं।

मै निरुत्तर बस सुनता चला गया .....
मेरा एक प्रश्न कई प्रश्नों को जन्म दे गया ....

तश्वीर गूगल के मदद से 
----अरशद अली----



Friday, December 21, 2012

यही काली लड़की तुम्हारे बेटे के बच्चे की माँ बनने वाली है ....अरशद अली..



लड़की वाले डरे-डरे से थे...
लड़के वाले हरे-भरे से थे..
हाँथ में थाल लिए कन्या जैसे आई
लड़के की माँ, पति पर चिल्लाई
मुझे सातवीं बार वही लड़की दिखला रहे हो

जगह बदल बदल कर एक हीं घराने में आ रहे हो

पति झुंझला गया
अपनी औकात पर आ गया
कहा,
भाग्यवान लड़की के मामले में तुम थोडा लेट हो...
क्या करोगी जब मामला पहले से सेट हो..
हर बार लड़की देख कर कहती हो
लड़की काली है

यही काली लड़की तुम्हारे बेटे के बच्चे की माँ बनने वाली है

श्रीमती बोली, मुझे उम्मीद नहीं था बेटे की नादानियों पर
तुम भी गुल खिलाओगे
अगर शादी यहाँ करोगे तो दहेज़ में क्या पाओगे?

लड़की चुप्पी तोड़ कर कही,
सासु अम्मा ...आज-कल में ले चलिए तो दहेज़ कम
और बहुत सारा सम्मान पाइयेगा
चार महीने अगर लेट करियेगा तो बदनामी ,एक काली बहु और साथ साथ
एक पोता भी पाइयेगा

तश्वीर गूगल के मदद से .... 
-----अरशद अली  -------

Saturday, December 15, 2012

अगर अम्मी नहीं होती .................अरशद अली

माँ की तबियत ठीक नहीं ........करीब एक महीने से बीमार हैं .......उनकी बिमारी मानसिक है .......मगर बेहद समझदारी के साथ ........वो जानती हैं की पूरा परिवार चिंतित है ........यही कारण है, कल रात  भी सभी के  सोने के बाद उन बर्तनों को चुप-चाप  धो डाला जो अगली  सुबह, मुझे धोने थे .........शायद वो सोंचती हैं बेटा को ठण्ड में सुबह-सुबह बर्तन धोने से परेशानी होगी  ........वो ज़ल्द ठीक हो जाएँ बस आप सभी की दुआओं की ज़रूरत ,और मुझे क्या चाहिए ..........अल्लाह दुआओं को सुनते हैं ........... मेरी माँ की लिए के लिए दुआ करें "वो ज़ल्द ठीक हो जाएँ"

        (1)
ज़ेहन गौर करे
गलतियां सुधर जाए
मेरे "खुदा" रात छटे
और एक सुबह आये

तुम दुआ मांगो
मै  भी दुआ करता हूँ
हम तुम्हारे,तुम हमारे
दुआगो बन जाए

नेकियाँ साथ हो
और बदी दूर रहे
दिली सुकून मिले
लब  जब कोई बात कहे

निगाह नीची रहे
और सर हमेशा सजदे में
मेरे "खुदा"
रहमो करम तेरा हो जाये


ज़ेहन गौर करे
गलतियां सुधर जाए
मेरे "खुदा" रात छटे
और एक सुबह आये


            (2)
क्या हाल हुआ होता ...
अगर अम्मी नहीं होती।
दिन -रात मै रोता
अगर अम्मी नहीं होती।

दूध का कतरा अगर
हिम्मत नहीं बढ़ता ....
ये कलम कैसे चलता
अगर अम्मी नहीं होती।

खिदमत,एक इबादत
क़दमों के निचे ज़न्नत ...
ज़न्नत ये  कैसे होता
अगर अम्मी नहीं होती।

कलमा सिखाने वाली
दिन-रात दुहराने वाली
इमां नहीं होता ..
अगर अम्मी नहीं होती।

कई रात  उनके फांके
हर आहट  पर  जो जागे ...
चैन से कैसे सोता
अगर अम्मी नहीं होती।

वो रिश्तों में हैं अफज़ल
"खुदा" की एक नेमत ..
मै  इंसान कैसे होता
अगर अम्मी नहीं होती।

--------अरशद अली --------

Saturday, December 1, 2012

आज मेरी बेटी दो साल की हो गयी ...बिलकुल बबली पर गयी है ......अरशद अली

वर्ष के सभी दिन महत्वपूर्ण हैं ,ऐसा मैंने बड़ों से सुना है ..मगर कुछ दिन ऐसे होते हैं जो इतिहास रच देते हैं ....
समय बीत  जाता है मगर वो गुजरे दिन ज़िन्दगी के एक अहम् मोड़ की तरह पुरे ज़िन्दगी को सकारात्मक सवरूप प्रदान कर देतें हैं।

          उन यादों को याद करना अंतर मन को ताज़ा करता है।
आज कुछ ऐसा हीं  दिन है।


         1 दिसम्बर 2010, एक नन्ही परी  "एंजिला " का जन्म हुआ था। आज वो दो वर्षों की हो गई ....... समय  रुकता नहीं ..और अपने साथ कई रहस्यों को छुपाये हुए है। लोग पूछते हैं "एंजिला " कौन है ?  और मै उत्तर तलाशने लगता हूँ।

वो तो एक परी है !
नहीं वो मेरी बेटी है।
नहीं-नहीं इससे भी कोई बड़ी बात हो ,इससे भी कोई सटीक उपमा हो तो वो कहना पसंद करूँगा ......सीधे शब्दों में , वो मेरी जान है ..............

       मुझे याद है अमजद भैया का फोन आया था ..."अरशद" तुम चाचा बन गए ! बेटी हुई है!
अलहम्दो -लिल्लाह .....कहा नहीं की चटक रंगों की एक बाल्टी जैसे किसी ने मेरे ऊपर उड़ेल  दिया ...कानों में संगीत घुलने लगे ...मन में आतिशबाजियां शुरू हो गयीं ......

       कहते हैं मन बड़ा कल्पनाशील होता है ....और कल्पना के घोड़े दौड़ पड़े ..अपनी नन्ही को देखने ...टटोलने ...मैंने भाई साहब से बस यूं हीं  पूछा कैसी है वो ...फिर जाने भैया ने क्या कहा और मैंने क्या सुना ....कल्पनाएँ आकर ले चुकी थी , मेरी बेटी ज़रूर अपनी छोटी बुआ "बबली" जैसी होगी सोंच कर मैंने उसे लॉक कर दिया।
 
      बबली (छोटी बहन) का जन्म मुझे याद नहीं मगर बचपन बिलकुल याद है ..शरारती ,हाजिर जवाब , बेहद खुबसूरत , और चंचल ....

      बबली का जन्म 1982 में हुआ ....उसके बाद मेरे खानदान में ये दूसरी बबली "एंजिला "का 2010 में जन्म एक उत्सव की  शुरुआत थी। करीब-करीब 28 वर्षों के बाद एक लड़की का जन्म उत्सव से महा-उत्सव में कैसे बदल गया मुझे पता हीं नहीं  चला ....भैया का फोन आया ...बात हुई ...  और भैया ने फोन रख भी दिया और मै जहाँ खड़ा था  थोड़ी देर वहीँ खड़ा रह गया।

     माँ को मैंने  उछलते हुए कहा "माँ  तुम दादी बन गयी ! और  फिर माँ की सकारात्मक  दुआओं से भरी बड -बड  सुनने को मै   वहां रुकने के  मुड़  में नहीं था ...  बस इतना महसूस किया की माँ  खुश थी।   भागते हुए  पापा को कहा ...तुरंत यह सुखद   समाचार  जंगल में आग की तरह फैल गयी।

   पापा के उत्सव मानाने का तरीका थोडा अलग है ......कोई ख़ुशी हो या गम वो एक दम शांत हो जातें हैं
दो रकात शुक्राने की नमाज़ अदा  की और मिठाई  बटवाने की तेयारी शुरू हो गयी .........

  पापा एक सामाजिक इन्सान है और अनुभवी इतना की हम लोग उन्हें देखते रह जाते हैं ...और एंजिला के मामले में उनका एक सधा  हुआ ख़ुशी  से भरा चेहरा  देखने लायक था ....ऐसे भी बात कोई साधारण नहीं थी वो दादा बने थे .............घर का माहोल बेहद रंगीन हो चूका था।

    फिर फोन का दौर शुरू हुआ ...भाई साहब मुंबई से बूंदी राजस्थान के तरफ रवाना हो चुके थे ...एंजिला बूंदी में थी अपनी नानी के घर ...... और हमसभी बोकारो (झारखण्ड) में थे ...ऐसा लग रहा था उड़ कर अपनी बच्ची के पास पहुँच जाता तो मज़ा आ जाता .....इस कमी को दूर करने के लिए फोन की मदद ली जा रही थी ......मुझे याद है ...भाभी से अगले दिन बात हो पाई थी मैंने उनसे पूछा की बाबु किसके जैसी दिखती है तो भाभी ने कहा था ..."बिलकुल तुम्हारे जैसी "  भाभी झूठ  बोल रही थी ....मेरी कल्पना के अनुसार वो बबली जैसी थी ...मगर ये झूठ बहुत प्यारा था .....

   आज मेरी बेटी दो साल की हो गयी ...बिलकुल बबली पर गयी है .......अल्लाह उसे और सवारे ......बुलंदी दे .....और हम सभी उसे बड़ी होते हुए देखें।

     कहते है रमजान के अंतिम दिनों में चाँद को देखना ईद की आमद है।
सवा महीने के बाद अपने चाँद को बूंदी जाकर देखा ...कलेजे को ठंडक पहुची .....और मैंने भाभी को कहा "भाभी ये तो बिलकुल बबली पर गयी है" ...भाभी ने  हाँ कहा और मेरी सारी  कल्पनाओं को एक धरातल मिला ......कल एंजिला से फोन पर बातें हुईं ...........जाने वो तोतली भाषा में क्या कही ........मगर उसे नहीं पता मै  उसकी सभी शब्दों को समझ गया ...........वो मुझे यही कह रही थी छोटे पापा ........अब तुम्हारी हीरो गिरी नहीं चलेगी .......अब मेरी बदमाशियों का दौर शुरू होने वाला है ...............और बहुत सी बातें मन में उमड़ घुमड़ रही है  फिर कभी .......


------अरशद अली -----

Thursday, July 26, 2012

उसको देखो "मस्त कलंदर" खुली आकाश में सोता है ..अरशद अली


युक्ति उसे सूझती है,
जो अभाव में जीता है
तुम पियो मिनरल वाटर
वो बारिश का पीता है

छत पर और एक घर बना कर
होम लोने लेने का चक्कर
उसको देखो "मस्त कलंदर"
खुली आकाश में सोता है

जिस धागे से सिले चटाई
उसी धागे से कुरता उसका
तुम सूट का वज़न उठाओ
वो शारीर हीं ढोता है

एक रोटी गरीब को देकर
तुम इश्वर का रूप धरो
वो अतिथि के आने पर
भूखे पेट हीं सोता है

तुम डरते हो खो देने पर 
तुम डरते हो कम पाने पर 
उसको देखो वो पागल,
अपनी इज्ज़त से डरता है 


दर्द तुम्हारे देखे भाले ..जिसको कह दो वही  उठाले
वो तो एक रमता जोगी है ..फटी बिवाई पड़े हैं छाले
तुम सोकर लड़ते हो सुख से 
वो दुःख से लड़ कर सोता है 






-----अरशद अली---

Friday, June 29, 2012

कुत्ता घी नहीं खाता है .........अरशद अली


मैंने अपने ससुर जी से कहा
आपकी बेटी चुटकी बजा कर
कई लड़ाइयाँ  लड़ लेती है
ससुर जी कहते हैं ....

"ताली एक हाँथ से नहीं बजती है "


शेर सुनाने पर भी माहोल
ठीक नहीं होता
ससुर जी कहते हैं ....

"सौ सुनार का तो एक लुहार का होता है "


बड़े भाई के समझाने पर भी
उसे समझ नहीं आई है
ससुर जी कहते हैं ....

"चोर चोर मोसेरे भाई हें "


आपकी बेटी का बनाया
खाना भी मुझे नहीं भाता है
ससुर जी कहते हैं ....

"कुत्ता घी नहीं खाता है "


मैंने कहा आप लड़ाई
सुलझा रहें हैं
या इसे और भड़का इए गा 
ससुर जी कहते हैं ....

"आप जैसा कीजियेगा वैसा हीं पाइयेगा "


मैंने कहा ..आप मुहाबरों में मेरा
अपमान कर रहें हैं
ससुर जी कहते हैं ....

"आप भी तो लग्घी से पानी भर रहें हैं"


ऐसे भी मेरी बेटी अपने माँ पर गयी है 
अभी से परेशान हो गए 
अभी तो वो नयी है 


माँ-बेटी के चक्कर में जो पड़े 
वो दिन-रात रोए ...


मैंने कहा ससुर जी ..

"बोया पेड़ बबुल का तो आम कहाँ से होए"

---अरशद अली---

तश्वीर गूगल के मदद से...

Thursday, June 28, 2012

आशा निराशा की गुत्थम-गुत्थी........अरशद अली


जो चाहता था हुआ नहीं.जो हुआ पर्याप्त नहीं
आशा निराशा की इस गुत्थम-गुत्थी में जीत 
किसी की नहीं
मानसिक लड़ाइयों में अंत की कामना करते हीं
स्थितियां नयी लड़ाई की पृष्ठ भूमि तैयार करता गया
कभी हार कभी जीत  चक्र बस चलता गया ..........


शब्दों का रंग
कागज पर पड़ते हीं
फिर से मै बन गया चित्रकार
और लग गया
भावनाओं का चित्र बनाने में
क्रंदन में एक पीलापन था
चित्रकार के इच्छा के बिपरीत
और काले रंग में उत्सव को गढ़ कर
सभी रंगों के शब्दों को देखा
उसके अर्थो से कोसों दूर
कई लकीरें खीचा
शब्दों से
सब तर्क बिहीन
पर धब्बों जैसे पसरे रंगों में
अर्थ ढूंढते आखों में
आशाओं का एक प्रतिबिम्ब था
चित्र जो भी शब्दों ने उकेरा
उसके रंगों में एक बंधन था
सब उलझे थे आपस में
क्रंदन, उत्सव
पीड़ा,हर्ष
पर भावनओं के चित्रण में
कम पड़ गए बीते वर्ष ......


अरशद अली
तश्वीर गूगल के मदद से.

Sunday, April 15, 2012

कुछ अनुभवी दम तोड़ देंगे,तब किससे सलाह लोगे?...अरशद अली

सभी  रिश्तों का अपना एक  मज़ा  है ...मगर एक पिता होने  का आनंद अलग है..कुछ अनुभव बाटना चाहता हूँ..कहाँ से शुरू करूँ  यही सोंच रहा हूँ ...

मै और मेरा बेटा आरिज़ 4 माह का
                                             
तुम नए हो
परन्तु मुझे लगता  है
कुछ पुरानी धारणाएं
घर कर रहीं हैं तुम्हारे अन्दर भी

और पक्षपात करना आ गया है तुम्हे 
खेलते हो मेरे साथ
मगर रोने से पहले तक
और चुप नहीं होते

वहीँ अपनी माँ के गोद  में शांत हंस देते हो
और शायद मुझ पर हीं
हँसते हो
और मै भी हंसने लगता हूँ

कल  देखा अपनी माँ से घंटों बात करते रहे
और जब  मै कुछ कहना चाहा तो
एक टूक-टूकी लगाये  देखते रहे.
और पुनः माँ के पास जाते हीं 
कितने बातों को  कह डाला


मेरे गोद में आराम मिलता है तुम्हे 
मैंने कई बार महसूस किया 
मगर नींद माँ की लोरियों से हीं 
आती है तुम्हे, ये भी जनता हूँ 


जब आये थे तो रोने और सोने के 
अलावा कुछ जानते नहीं थे 
और अब रोते हो तो शमा बाँध  देते हो 
सोते हो तो मै जाग कर तुम्हे
देखता रहता हूँ....और खुश होता हूँ.


मुझे लगता है 
तुम कहीं से कुछ सिख रहे हो 
कुछ हरकतों में तुम्हारे दादा की 
वहीँ कुछ में दादी की  झलक  होती  है 


और मै दंग रह जाता हूँ  
क्रम चलता रहेगा
तुम सीखते जाओगे
और वक़्त बीतता  जाएगा


और तुम्हारी तोतली आवाज़ में कडापन आते-आते 
कई अनुभवी 
दम तोड़ देंगे (अल्लाह न करे) 
तब तुम किनसे सीखोगे?, सलाह लोगे? 

आज तुम कुछ कहते नहीं..
कुछ मांगते नहीं
मगर कल तुम्हारी तोतली आवाज़
कई प्रश्न पूछेंगी...
पापा ये क्या है?
पापा वो क्या है?

उन्ही प्रश्नों का उत्तर धुंध रहा हूँ
कहो तो वक़्त बिता रहा हूँ
तुम्हे समझने के लिए
तुम्हे समझाने के लिए

नए दौर में
तुम्हारे लिए कई रहस्य छुपे हैं
मगर कुछ सौगात तुम्हारे लिए
उस समय आवश्यक होंगे


इस लिए इ-मेल के हांथो
शहीद हुई ,तुम्हारे दादा की लिखी
एक पुरानी चिट्ठी
और कोंटेक्ट लेंस से हार चूका 
दादी का एक पुराना चश्मा
छुपा कर रख दिया है

तुम्हारे पूर्वज के बटोरे रंगों को
तुम्हारी दुनिया कचड़ा कहेगी ...
मगर तुम उन्हें छूकर
ताक़त बटोर लेना
जब भी असहाय महसूस करना

कल तुम भूल जाओगे निश्चित 
उन्हें ,जो तुम्हे अंगुली पकड़ कर चलना सिखलाएंगे
और उन्हें भी जिनके प्रयास से तुम्हे बोलना आएगा
इसलिए कुछ श्याम-श्वेत  तश्वीरें
मढवा कर छुपा दिया हूँ ..


इसी आस में कि जब कभी भी
राह भूलो तो उन्हें देख लेना 
संभवतः तब सब उलझे गिरह खुल जायेंगे
जो राह बिसर गए हैं 
वो मिल जायेंगे 


साथ-साथ कुछ तरकीबें बटोर रहा हूँ 
जो तुमको शक्ति देंगे 
कुछ कहावतों को गूँथ रहा हूँ 
जिन्हें तुम्हारे युग के लोग तोड़-मरोड़ देंगे 


मेरे इन बटोरे पोठ्ली से मंहगा 
कल तुम्हारा एक मोबाइल होगा 
पर इन सहेजे धरोहर से तुम जुड़ जाओगे 
अपने दादा-दादी से क्षण  में 
जिनसे जुड़ना उन समयों में
तुम्हारे मोबाइल से भी असंभव होगा ......

और बहुत  सी बाते उमड़- घुमड़ रहीं हैं ...............फिर कभी .....

---अरशद अली ---







Sunday, April 1, 2012

सत्य को सौगंघ की आवश्यकता है कहाँ........अरशद अली


--------१-------
सत्य को सौगंघ की
आवश्यकता है कहाँ
जो बिजय है जन्म से
 हार का उसे भय कहाँ

 वाण जो निकल गए
 वो कहाँ लौटते
 भेदते हैं लक्ष्य को
 जो लक्ष्य के लिए चला

 घेरता है लाख
 उड़ता हुआ बादल घना
 सूर्य को ढके कोई
प्रवल नहीं कोई बना

शौर्य और सत्य को
सदेव इश्वरिये बल मिला
 रेत भी उर्वर हुआ
 रक्त उसमे जब मिला

 ------२-------
एक बूंद ....ज़िन्दगी
गुज़रे वो ख़ुशी में
 ग़म आये और जाए
जीना हमें इसी में 

वजूद खोजना लहू का
 पसीने से लत-पथ होकर
हर दुःख पर है आंसू
आंसू एक ख़ुशी में 

हिम्मत बनाये रखा
कुछ पाकर, कुछ खो कर
गमगीन ज़िन्दगी में
बन कर रहा एक जोकर 

कुछ पाया,शुक्र उसका
खोया तो सब्र खुद में
ये ज़िन्दगी एक झुला
झुला इसे रच कर

 तुम तुम रहो हरदम
मै खुद से खुश रहूँगा
 मै तुम जैसा बन जाऊं
तो क्या होगा यूँ बन कर...

. --अरशद अली--
पिक्चर गूगल के आभार से

Sunday, March 25, 2012

चलो एक पंछी का नाम बताओ जो काला होता है?.....अरशद अली

मिसेज़ शर्मा परेशान हैं ..
पत्नी ने धीरे से कहा

मैंने पूछा क्यों?

पत्नी ने कहा अपने बच्चों को लेकर
चिंतीत हैं

मैंने पुनः पूछा क्यों?

पत्नी ने कहा
बच्चे हाज़िर ज़वाब हो गए हैं

मैंने कहा
इसमें चिंता के क्या बात है
बच्चे हैं उनके अपने भी ज़ज्बात हैं
देखता हूँ समय पर स्कूल आते जाते हैं
सभी से तमीज़ से पेश आते हैं
तुम औरत खामखा की आफत हो
चिंतीत हीं रहती हो जब सब कुछ सलामत हो

पत्नी कही
नहीं-नहीं तुम समझ नहीं रहे हो
और ना हीं समझ पाओगे
आज मिसेज़ शर्मा को चाय पर बुलाई हूँ
बच्चे कैसे हैं तुम भी जान जाओगे

तयशुदा कार्यक्रम के तहत
मिसेज़ शर्मा अपने तीनो बच्चों के साथ आ गयीं
बच्चों की मुस्कराहट मुझे भा गयी
मैंने कहा भाभी जी,आपने बच्चों को
अच्छे संस्कार सिखलाएँ हैं
आपके पास तो हर मर्ज़ की दवाएं हैं

मिसेज़ शर्मा ने कहा,
नहीं भाई साहब बच्चों में एक नयी तरह की उमंग है
मै, मेरा पूरा परिवार इन तीनों से तंग है

मैंने कहा छोडिये मै बच्चों से हीं बात करता हूँ

सबसे पहले छोटे बच्चे "छोटू" से कहा,
तुम तो बहुत अच्छे लग रहे हो
तीनों में तुम सबसे शरीफ बच्चे लग रहे हो
चलो मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दे दो
इससे पहले आरिज़ भैया (बेटा) के अलमारी से कोई भी खेलौना ले लो
छोटू अलमारी से एक हाथी निकल लाया

मैंने पूछा, बेटा ये बतलाओ दुनिया का सबसे बड़ा जानवर कौन है?
छोटू झटपट कहा "चूहा"
कैसे पूछने पर कहा
बस इतना हीं जनता हूँ.

मैंने कहा कोई बात नहीं, चलो एक पंछी का नाम बताओ
जो काला होता है?
छोटू बोला नाम तो नहीं पता मगर जानता हूँ कैसे बोलता है
मैंने पूछा कैसे बोलता है यही बताओ
छोटू बोला कावं-कावं

उत्तर सुन कर मिसेज़ और मिसेज़ शर्मा मुस्कुरा रहीं थी
असल में वो मेरी हसी उडा रही थीं

मैंने माहोल देख कर एक प्रश्न और दागा

भों-भों कौन सा जानवर बोलता है ये तो तुम ज़रूर जानते होगे
छोटू कहा,हाँ अंकल इसका भी उत्तर जानता हूँ
मैंने कहा बताओ

छोटू बोला पड़ोस के अंकल के घर में जो जानवर रहता है
वही भों-भों करता है
मैंने कहा ,बेटे उसी जानवर का नाम तो बताओ
छोटू बोला "मोती"

छोटू का उत्तर मेरी जिज्ञासा कम कर कर गया
मै अपने अन्दर की व्यथा हज़म कर गया
इसी क्रम में एक प्रश्न और कर गया
अच्छा छोटू में...में ...कौन बोलता है?

छोटू ने कहा, अभी तो आप हीं बोल रहें हो
उसके बाद मम्मी पापा से मेरा
शिकायत लगाने के क्रम में घर पर बोलेगी..
फिर पापा में..में...करेंगे
अंकल आप हीं बताइए
में...में ... से बच्चे डरेंगे ?

इतना सुनते हीं मै चुप हो गया

थोड़ी देर के बाद कहा, भाभी जी मै भाई साहब से मिल कर बात करता हूँ
बच्चों को समझाने का उनसे मिल कर प्रयास करता हूँ

मिसेज़ शर्मा ने कहा,
भाई साहब आप चिंता मत करें बच्चे सुधर हीं जायेंगे..अभी नयें हैं
आप इनके पापा से मत मिलिए ये बच्चे उनपर हीं गएँ हैं.