Sunday, April 15, 2012

कुछ अनुभवी दम तोड़ देंगे,तब किससे सलाह लोगे?...अरशद अली

सभी  रिश्तों का अपना एक  मज़ा  है ...मगर एक पिता होने  का आनंद अलग है..कुछ अनुभव बाटना चाहता हूँ..कहाँ से शुरू करूँ  यही सोंच रहा हूँ ...

मै और मेरा बेटा आरिज़ 4 माह का
                                             
तुम नए हो
परन्तु मुझे लगता  है
कुछ पुरानी धारणाएं
घर कर रहीं हैं तुम्हारे अन्दर भी

और पक्षपात करना आ गया है तुम्हे 
खेलते हो मेरे साथ
मगर रोने से पहले तक
और चुप नहीं होते

वहीँ अपनी माँ के गोद  में शांत हंस देते हो
और शायद मुझ पर हीं
हँसते हो
और मै भी हंसने लगता हूँ

कल  देखा अपनी माँ से घंटों बात करते रहे
और जब  मै कुछ कहना चाहा तो
एक टूक-टूकी लगाये  देखते रहे.
और पुनः माँ के पास जाते हीं 
कितने बातों को  कह डाला


मेरे गोद में आराम मिलता है तुम्हे 
मैंने कई बार महसूस किया 
मगर नींद माँ की लोरियों से हीं 
आती है तुम्हे, ये भी जनता हूँ 


जब आये थे तो रोने और सोने के 
अलावा कुछ जानते नहीं थे 
और अब रोते हो तो शमा बाँध  देते हो 
सोते हो तो मै जाग कर तुम्हे
देखता रहता हूँ....और खुश होता हूँ.


मुझे लगता है 
तुम कहीं से कुछ सिख रहे हो 
कुछ हरकतों में तुम्हारे दादा की 
वहीँ कुछ में दादी की  झलक  होती  है 


और मै दंग रह जाता हूँ  
क्रम चलता रहेगा
तुम सीखते जाओगे
और वक़्त बीतता  जाएगा


और तुम्हारी तोतली आवाज़ में कडापन आते-आते 
कई अनुभवी 
दम तोड़ देंगे (अल्लाह न करे) 
तब तुम किनसे सीखोगे?, सलाह लोगे? 

आज तुम कुछ कहते नहीं..
कुछ मांगते नहीं
मगर कल तुम्हारी तोतली आवाज़
कई प्रश्न पूछेंगी...
पापा ये क्या है?
पापा वो क्या है?

उन्ही प्रश्नों का उत्तर धुंध रहा हूँ
कहो तो वक़्त बिता रहा हूँ
तुम्हे समझने के लिए
तुम्हे समझाने के लिए

नए दौर में
तुम्हारे लिए कई रहस्य छुपे हैं
मगर कुछ सौगात तुम्हारे लिए
उस समय आवश्यक होंगे


इस लिए इ-मेल के हांथो
शहीद हुई ,तुम्हारे दादा की लिखी
एक पुरानी चिट्ठी
और कोंटेक्ट लेंस से हार चूका 
दादी का एक पुराना चश्मा
छुपा कर रख दिया है

तुम्हारे पूर्वज के बटोरे रंगों को
तुम्हारी दुनिया कचड़ा कहेगी ...
मगर तुम उन्हें छूकर
ताक़त बटोर लेना
जब भी असहाय महसूस करना

कल तुम भूल जाओगे निश्चित 
उन्हें ,जो तुम्हे अंगुली पकड़ कर चलना सिखलाएंगे
और उन्हें भी जिनके प्रयास से तुम्हे बोलना आएगा
इसलिए कुछ श्याम-श्वेत  तश्वीरें
मढवा कर छुपा दिया हूँ ..


इसी आस में कि जब कभी भी
राह भूलो तो उन्हें देख लेना 
संभवतः तब सब उलझे गिरह खुल जायेंगे
जो राह बिसर गए हैं 
वो मिल जायेंगे 


साथ-साथ कुछ तरकीबें बटोर रहा हूँ 
जो तुमको शक्ति देंगे 
कुछ कहावतों को गूँथ रहा हूँ 
जिन्हें तुम्हारे युग के लोग तोड़-मरोड़ देंगे 


मेरे इन बटोरे पोठ्ली से मंहगा 
कल तुम्हारा एक मोबाइल होगा 
पर इन सहेजे धरोहर से तुम जुड़ जाओगे 
अपने दादा-दादी से क्षण  में 
जिनसे जुड़ना उन समयों में
तुम्हारे मोबाइल से भी असंभव होगा ......

और बहुत  सी बाते उमड़- घुमड़ रहीं हैं ...............फिर कभी .....

---अरशद अली ---







Sunday, April 1, 2012

सत्य को सौगंघ की आवश्यकता है कहाँ........अरशद अली


--------१-------
सत्य को सौगंघ की
आवश्यकता है कहाँ
जो बिजय है जन्म से
 हार का उसे भय कहाँ

 वाण जो निकल गए
 वो कहाँ लौटते
 भेदते हैं लक्ष्य को
 जो लक्ष्य के लिए चला

 घेरता है लाख
 उड़ता हुआ बादल घना
 सूर्य को ढके कोई
प्रवल नहीं कोई बना

शौर्य और सत्य को
सदेव इश्वरिये बल मिला
 रेत भी उर्वर हुआ
 रक्त उसमे जब मिला

 ------२-------
एक बूंद ....ज़िन्दगी
गुज़रे वो ख़ुशी में
 ग़म आये और जाए
जीना हमें इसी में 

वजूद खोजना लहू का
 पसीने से लत-पथ होकर
हर दुःख पर है आंसू
आंसू एक ख़ुशी में 

हिम्मत बनाये रखा
कुछ पाकर, कुछ खो कर
गमगीन ज़िन्दगी में
बन कर रहा एक जोकर 

कुछ पाया,शुक्र उसका
खोया तो सब्र खुद में
ये ज़िन्दगी एक झुला
झुला इसे रच कर

 तुम तुम रहो हरदम
मै खुद से खुश रहूँगा
 मै तुम जैसा बन जाऊं
तो क्या होगा यूँ बन कर...

. --अरशद अली--
पिक्चर गूगल के आभार से