Friday, June 29, 2012

कुत्ता घी नहीं खाता है .........अरशद अली


मैंने अपने ससुर जी से कहा
आपकी बेटी चुटकी बजा कर
कई लड़ाइयाँ  लड़ लेती है
ससुर जी कहते हैं ....

"ताली एक हाँथ से नहीं बजती है "


शेर सुनाने पर भी माहोल
ठीक नहीं होता
ससुर जी कहते हैं ....

"सौ सुनार का तो एक लुहार का होता है "


बड़े भाई के समझाने पर भी
उसे समझ नहीं आई है
ससुर जी कहते हैं ....

"चोर चोर मोसेरे भाई हें "


आपकी बेटी का बनाया
खाना भी मुझे नहीं भाता है
ससुर जी कहते हैं ....

"कुत्ता घी नहीं खाता है "


मैंने कहा आप लड़ाई
सुलझा रहें हैं
या इसे और भड़का इए गा 
ससुर जी कहते हैं ....

"आप जैसा कीजियेगा वैसा हीं पाइयेगा "


मैंने कहा ..आप मुहाबरों में मेरा
अपमान कर रहें हैं
ससुर जी कहते हैं ....

"आप भी तो लग्घी से पानी भर रहें हैं"


ऐसे भी मेरी बेटी अपने माँ पर गयी है 
अभी से परेशान हो गए 
अभी तो वो नयी है 


माँ-बेटी के चक्कर में जो पड़े 
वो दिन-रात रोए ...


मैंने कहा ससुर जी ..

"बोया पेड़ बबुल का तो आम कहाँ से होए"

---अरशद अली---

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Thursday, June 28, 2012

आशा निराशा की गुत्थम-गुत्थी........अरशद अली


जो चाहता था हुआ नहीं.जो हुआ पर्याप्त नहीं
आशा निराशा की इस गुत्थम-गुत्थी में जीत 
किसी की नहीं
मानसिक लड़ाइयों में अंत की कामना करते हीं
स्थितियां नयी लड़ाई की पृष्ठ भूमि तैयार करता गया
कभी हार कभी जीत  चक्र बस चलता गया ..........


शब्दों का रंग
कागज पर पड़ते हीं
फिर से मै बन गया चित्रकार
और लग गया
भावनाओं का चित्र बनाने में
क्रंदन में एक पीलापन था
चित्रकार के इच्छा के बिपरीत
और काले रंग में उत्सव को गढ़ कर
सभी रंगों के शब्दों को देखा
उसके अर्थो से कोसों दूर
कई लकीरें खीचा
शब्दों से
सब तर्क बिहीन
पर धब्बों जैसे पसरे रंगों में
अर्थ ढूंढते आखों में
आशाओं का एक प्रतिबिम्ब था
चित्र जो भी शब्दों ने उकेरा
उसके रंगों में एक बंधन था
सब उलझे थे आपस में
क्रंदन, उत्सव
पीड़ा,हर्ष
पर भावनओं के चित्रण में
कम पड़ गए बीते वर्ष ......


अरशद अली
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