Wednesday, July 9, 2014

चलो दिया से बाती के रिश्तों की एक वज़ह ढूंढें ---------अरशद अली


गली मोहल्ले से एक  कहानी को गुज़रते देखा 
हर किरदार को किसी और में  ठहरते  देखा 

कोई मुझमे था एहसास हुआ मुझको भी 
मैंने उसे देख आईने को सवरते देखा 

एक शोर में दब जाया करतें थे  उसके लफ्ज़ बेवजह 
उन  आवाज़ को अपने अंदर हीं टहलते देखा 

चलो दिया से बाती के रिश्तों की एक वज़ह ढूंढें 
जब भी देखा बाती को दिया में हीं जलते देखा 

कागज़ में दर्ज़ गवाहों के पते पर 
मैंने मुज़रिम को कई बार ठहरते देखा 

---अरशद अली ---

Tuesday, July 1, 2014

एक ख़त जला और गुजरा हुआ वक़्त दिख गया ...........अरशद अली

कुछ लफ्ज़ मेरे लब को
नेकी-बदी ने दी
एक तमाचा मेरे गुरुर पर
मेरी ख़ुदी ने दी
एक अश्क मेरे शक्ल का
इस ज़िन्दगी ने दी
सब छूटने का ग़म
मेरी बेखुदी ने दी
एक ख़त जला और
गुजरा हुआ वक़्त दिख गया
एक अँधेरा मेरी ज़िन्दगी को
इस रौशनी ने दी
सब लफ्ज़ इन हवाओं में
महफूज़ अब भी है
मौत मेरी ज़िन्दगी को
इसी ज़ुस्तज़ु ने दी
अब पूछने को कई
सवाल ज़िंदा हैं
दिल टूट जाने की सजा
खामोशियों ने दी

---अरशद अली ---