गली मोहल्ले से एक कहानी को गुज़रते देखा
हर किरदार को किसी और में ठहरते देखा
कोई मुझमे था एहसास हुआ मुझको भी
मैंने उसे देख आईने को सवरते देखा
एक शोर में दब जाया करतें थे उसके लफ्ज़ बेवजह
उन आवाज़ को अपने अंदर हीं टहलते देखा
चलो दिया से बाती के रिश्तों की एक वज़ह ढूंढें
जब भी देखा बाती को दिया में हीं जलते देखा
कागज़ में दर्ज़ गवाहों के पते पर
मैंने मुज़रिम को कई बार ठहरते देखा
---अरशद अली ---