जन्म दिवस की शुभकामनाओं से दिन की शुरुआत हुई अपने पराये लगे पराये अपने लगे ......बात मतलब की यही रही की एक बसंत और गया ....ग़मज़दा रहूँ या जश्न मना लूँ यही सोंच रहा हूँ ......वक़्त तो मुट्ठी से फिसलता हुआ रेत है .....जाने कितना वक़्त हाथ से निकल गया और कितना बाकी है निकल जाने को ......इसी उधेड़बुन में मन से निकली इस कविता से मेरे मनोभाव का सटीक चित्रण हो इस लिए मैंने जीवन के सभी रंगों को एक केनवस पर डालने का प्रयास किया है...आप की टिप्पणी की आवश्यकता है...
उठते गिरते
चलते चलते
मंजिल मंजिल करते शोर
एक जन्म फिर जन्मदिवस
फिर हल्ला गुल्ला चारो ओर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
अच्छे बुरे हर काम में शामिल
जीवन के जंजाल में शामिल
किसी के शादी
किसी की मय्यत
अफरा तफरी चारो ओर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
पाप पुण्य की
नाप जोख में
कभी उत्सव में
कभी शोक में
निराशाओं के सभी रात में
आशाओं की आती भोर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर .
अरशद अली ......अपने 38 वे पड़ाव पर
उठते गिरते
चलते चलते
मंजिल मंजिल करते शोर
एक जन्म फिर जन्मदिवस
फिर हल्ला गुल्ला चारो ओर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
अच्छे बुरे हर काम में शामिल
जीवन के जंजाल में शामिल
किसी के शादी
किसी की मय्यत
अफरा तफरी चारो ओर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर
पाप पुण्य की
नाप जोख में
कभी उत्सव में
कभी शोक में
निराशाओं के सभी रात में
आशाओं की आती भोर
एक कदम
फिर एक कदम
बढ़ते हुए कब्र की ओर .
अरशद अली ......अपने 38 वे पड़ाव पर