खुला राज तो तेरी रुसवाई होगी
मै राजे मुहब्बत निहाँ छोड़ जाऊं
जिसे खूने दिल से मै लिखता रहा हूँ
अधूरी हीं वो दास्ताँ छोड़ जाऊं
मेरा ख़ून जो तेरे दर पे गिरेगा
तो फिर हश्र तक भी नहीं उठ सकेगा
मै ये सोंचता हूँ की टकरा के सर को
तेरे दर पे अपनी निशान छोड़ जाऊं
मुझे मेरे मिटने का कुछ ग़म नहीं है
तुम्हारी ख़ुशी में हीं मेरी ख़ुशी है
जरा देख ले तू मुझे मुस्कुरा कर
तुम्हारी कसम मै जहाँ छोड़ जाऊं
अरशद अली
arshad.ali374@gmail.com (मेरी (हिंदी) ग़लतियों को मेरे मेल पर बतलायेंगे तो मेरी हिंदी भी हिंदी जैसी हो जायेगी-एक आग्रह )
8 comments:
जरा देख ले तू मुझे मुस्कुरा कर
तुम्हारी कसम मै जहाँ छोड़ जाऊं
क्या बात है....अलग ही अंदाज़ में है यह रचना तो...बहुत खूब...सुन्दर लिखा है..
दिल को छू गया आपका कलाम।
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रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?
बहुत खूबसूरत नज़्म..दर्द को बयां करती हुई
मेरा ख़ून जो तेरे दर पे गिरेगा
तो फिर हश्र तक भी नहीं उठ सकेगा
मै ये सोंचता हूँ की टकरा के सर को
तेरे दर पे अपनी निशान छोड़ जाऊं
Waah Arshad Bhai waah, Really gr8 laajabaab ! bahut khoob. plz. keep it up .
मुझे मेरे मिटने का कुछ ग़म नहीं है
तुम्हारी ख़ुशी में हीं मेरी ख़ुशी है
जरा देख ले तू मुझे मुस्कुरा कर
तुम्हारी कसम मै जहाँ छोड़ जाऊं
Nice post .
जरा देख ले तू मुझे मुस्कुरा कर
तुम्हारी कसम मै जहाँ छोड़ जाऊं
सुन्दर और समर्पित पोस्ट
बहुत भाया
bahut khub
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
BAHUT ACHHA HAI SIR
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