एक विनय जीवन देने की माँ तुमसे है ध्यान धरो
स्त्री भुर्ण हूँ मारी जाउंगी थोडा मुझपर दया करो
संवेदनाओं को झंझोड़ देने वाली ये याचना अभी भी हो रही है...और अभी भी मानवता की हत्याएं निरंतर है
एक संवाद उस माँ से जो इस हत्या में शामिल थी (पुर्णतः या अंशतः )
माँ राह तुमने हीं खो दिया
अन्यथा इतना विलाप क्यों होता
मेरे जन्म के अनुरोध को
माँ तुमने भी अवरोध किया
अन्यथा इतना विलाप क्यों होता
क्रंदन पत्थर ह्रदय को पिघला दे
मैंने भी तो रोया था
माँ तुमने मानव धर्म,
मैंने जीवन हीं खोया था ...........
क्यों मूक हो माँ ?? जवाब दो ....
माँ तुमने बिरोध क्यों नहीं किया?? जवाब दो....
मुझे उत्तर चाहिए......
----अरशद अली-----
7 comments:
क्यों मूक हो माँ ?? जवाब दो ....
माँ तुमने बिरोध क्यों नहीं किया?? जवाब दो....
मुझे उत्तर चाहिए......
सन्देश देती हुई, उत्तरविहीन प्रश्न फिर भी तलाश जारी है सार्थक पोस्ट, आभार......
जागरूकता देती अच्छी प्रस्तुति
---अनुत्तरित प्रश्न...
अरशद भाई, अस्सलामवालेकुम!
आप ने हिंदी के शब्दों का जो बेजोड़ मिश्रण किया हाई वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है, मार्मिक रचना पेश करने के लिए धन्यवाद!
आपका फोल्लोवेर बन गया हूँ सो आता रहूँगा, आप भी आते रहिएगा!
उम्दा पोस्ट
Bahut uljha huva prash hai ..,. shayad maa ki majboori koi samajh nahi pata ...
धार्मिक मुद्दों पर परिचर्चा करने से आप घबराते क्यों है, आप अच्छी तरह जानते हैं बिना बात किये विवाद ख़त्म नहीं होते. धार्मिक चर्चाओ का पहला मंच ,
यदि आप भारत माँ के सच्चे सपूत है. धर्म का पालन करने वाले हैं तो
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