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सत्य को सौगंघ की
आवश्यकता है कहाँ
जो बिजय है जन्म से
हार का उसे भय कहाँ
वाण जो निकल गए
वो कहाँ लौटते
भेदते हैं लक्ष्य को
जो लक्ष्य के लिए चला
घेरता है लाख
उड़ता हुआ बादल घना
सूर्य को ढके कोई
प्रवल नहीं कोई बना
शौर्य और सत्य को
सदेव इश्वरिये बल मिला
रेत भी उर्वर हुआ
रक्त उसमे जब मिला
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एक बूंद ....ज़िन्दगी
गुज़रे वो ख़ुशी में
ग़म आये और जाए
जीना हमें इसी में
वजूद खोजना लहू का
पसीने से लत-पथ होकर
हर दुःख पर है आंसू
आंसू एक ख़ुशी में
हिम्मत बनाये रखा
कुछ पाकर, कुछ खो कर
गमगीन ज़िन्दगी में
बन कर रहा एक जोकर
कुछ पाया,शुक्र उसका
खोया तो सब्र खुद में
ये ज़िन्दगी एक झुला
झुला इसे रच कर
तुम तुम रहो हरदम
मै खुद से खुश रहूँगा
मै तुम जैसा बन जाऊं
तो क्या होगा यूँ बन कर...
. --अरशद अली--
पिक्चर गूगल के आभार से
5 comments:
दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर ...
थोड़ा वर्तनी पर ध्यान दें
सोर्य और सत्य को
सदेव इश्वरिये बल मिला
रेत भी उर्वर हुआ
रक्त उसमे जब मिला
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शौर्य और सत्य को
सदैव ईश्वरीय बल मिला
सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई
dono muktak bahut hee khoobsoorat likhe hain sir jee!
Your presentation is too good & content is superb one... i m agree with Mrs. Sangita Swaroop ji.
I am very thankful to you for nice blogging..
SANGITA JEE,SUNIL SAHAB,SURENDRA JEE,AUR AKASH SAHAB AAP SABHI KA SHUKRIYA...AAPKI PARTIKRIYA MANOBAL KO BADHATI HAI...
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