कुछ शब्दों के जोड़ घटाव से, घटनाओं के कई पड़ाव से, जो भी सिखा इस जीवन से, कुछ शब्द अरशद के मन से...................
Monday, June 14, 2010
अपनी भी उमंगें भरती है यू कुलाचे .......................अरशद अली
है आसमान की सीमा
जनता है मन ये मेरा
पर अपनी भी उमंगें
भरती है यू कुलाचे
फिर थक कर दूर जाकर
नहीं ख़त्म होता अम्बर
दिखता है फिर नीचे
सब कुछ छोटा ज़मीं पे
और थक सा जाता पर भी
जाना है अपने घर भी
है आसमान सुन्दर
पर ज़मीं से दूर होकर
फूलने लगती हें सांसे
और लौटता हूँ डर कर
कि मन बड़ा है चंचल
ले जा रहा है उपर
सब छूटते हें नीचे
वो घोंसले दरखतें
है बोध मेरे मन को
मिलेगा सुकून उड़ कर
पर बैठेंगे कहाँ थक कर
क्या खायेंगे चुन कर
और सोंच कर ये सब
आ जाता हूँ नीचे
कि दुनिया बस यहीं है
उड़ना भी दायरे में
जब जन्म है यहीं का
तो मरना भी यहीं पे .
अरशद अली
arshad.ali374@gmail.com (मेरी (हिंदी) ग़लतियों को मेरे मेल पर बतलायेंगे तो मेरी हिंदी भी हिंदी जैसी हो जायेगी-एक आग्रह )
Thursday, June 3, 2010
तुम्हारी कसम मै जहाँ छोड़ जाऊं.................अरशद अली
खुला राज तो तेरी रुसवाई होगी
मै राजे मुहब्बत निहाँ छोड़ जाऊं
जिसे खूने दिल से मै लिखता रहा हूँ
अधूरी हीं वो दास्ताँ छोड़ जाऊं
मेरा ख़ून जो तेरे दर पे गिरेगा
तो फिर हश्र तक भी नहीं उठ सकेगा
मै ये सोंचता हूँ की टकरा के सर को
तेरे दर पे अपनी निशान छोड़ जाऊं
मुझे मेरे मिटने का कुछ ग़म नहीं है
तुम्हारी ख़ुशी में हीं मेरी ख़ुशी है
जरा देख ले तू मुझे मुस्कुरा कर
तुम्हारी कसम मै जहाँ छोड़ जाऊं
अरशद अली
arshad.ali374@gmail.com (मेरी (हिंदी) ग़लतियों को मेरे मेल पर बतलायेंगे तो मेरी हिंदी भी हिंदी जैसी हो जायेगी-एक आग्रह )
मै राजे मुहब्बत निहाँ छोड़ जाऊं
जिसे खूने दिल से मै लिखता रहा हूँ
अधूरी हीं वो दास्ताँ छोड़ जाऊं
मेरा ख़ून जो तेरे दर पे गिरेगा
तो फिर हश्र तक भी नहीं उठ सकेगा
मै ये सोंचता हूँ की टकरा के सर को
तेरे दर पे अपनी निशान छोड़ जाऊं
मुझे मेरे मिटने का कुछ ग़म नहीं है
तुम्हारी ख़ुशी में हीं मेरी ख़ुशी है
जरा देख ले तू मुझे मुस्कुरा कर
तुम्हारी कसम मै जहाँ छोड़ जाऊं
अरशद अली
arshad.ali374@gmail.com (मेरी (हिंदी) ग़लतियों को मेरे मेल पर बतलायेंगे तो मेरी हिंदी भी हिंदी जैसी हो जायेगी-एक आग्रह )
Subscribe to:
Posts (Atom)