Thursday, March 31, 2011

आप भी किसी की बदनामी करने का सोंच रहे है तो कृपया इसे ज़रूर पढ़ें...........अरशद अली

आज मुझे एक बहुत पुरानी कहानी याद आती है जिसे मेरे बचपन में किसी फेरी वाले अंकल ने सुनाया था.मुझे ठीक से याद नहीं की उन्होंने ये कहानी क्यों और किसके लिए कहा था जब माँ आस पड़ोस के औरतों के साथ दरवाजे पर फेरी वाले अंकल से कुछ खरीद रर्हीं थी.
बाज़ार में काफी भीड़-भाड़ के शोर में अचानक तेज़ी आने से लोगों की भीड़ एक जगह पर जमा होने लगीधीरे-धीरे चर्चा होने लगी की एक चोर शायद किसी दुकान से कुछ चोरी करने के दौरान पकड़ा गया है.जितने लोग उतने बातों के बीच कहनी में हिंदी फिल्मों का टेस्ट आने लगा था. इसी बीच चोर की पिटाई भी रह रह कर हो रही थी.चोर अपने उपर आई मुसीबत को जैसे तैसे झेल रहा था.तभी पुलिस की गाड़ी आते देख भीड़ में हडबडाहट आ गयी.चोर भी मन ही मन खुश ज़रूर हुआ होगा की जनता की बिना नाप -तौल की पिटाई से पुलिस की पिटाई सहने लायक होगी
अब जो होना था हुआ,दो चार थप्पड़ दस बारह गन्दी गालियों से चोर साहब का स्वागत किया गया. हाँथ में हथकड़ी रस्सा लगा कर चोर को पुरे बाज़ार में घुमाने की तैयारी जोर शोर से होने लगी .चोर भी अपने अपमान से डरता दिख रहा था मगर तीर कमान से निकल चूका था.
आधे घंटे के ड्रामे के बाद चोर,पीछे घुमने वाले लोग,पुलिस सभी बुरी तरह से थक चुके थे.चोर साहब को भी बैठने की इज़ाज़त मिल गयी.बाज़ार के लोग भी इस तमाशे का आनंद लेने का कोई मौका गवाना नहीं चाहते थे.चोर साहब भी बुरी तरह से अपने ऊपर किये अपमान को हजम नहीं कर पा रहे थे.
बाज़ार के लीगों में जहाँ चोर की मजेदार कहानी मनोरंजन का कारण बना हुआ था वहीँ चोर अपनी बदनामी का बदला लेने के लिए एक मौका के तलाश में लगा था . इसी बीच एक व्यक्ति जो चोर को बार बार अपनी टिपण्णी से दुखी कर रहा था चोर के बनावटी मुस्कराहट को समझ नहीं पाया.पुलिस भी चोर की मुस्कराहट का अर्थ जानना चाहती थी.दो चार भद्दी गली देकर जब पुलिस ने पूछा तो चोर ने कहा "हाकिम मै दोस्ती पर हस रहा हूँ " पुलिस को कुछ समझ नहीं आया ,दो चार गाली पड़ने पर चोर ने कहा " जनाब मै तो चोरी करते पकड़ा हीं गया हूँ मगर मैंने अपने साथी का नाम नहीं लिया क्यों की मुझे दोस्ती का अर्थ समझ में आता है,मगर मेरा दोस्त जो इस चोरी में साथ था वो मुझे फसा देना चाहता है कयोंकि सुबह से जो हम दोनों ने चुराया उसका हिस्सा उसे मुझे देना न पड़े .मगर जनाब आप मुझे जान से मार भी दोगे तो मै उसका नाम नहीं लूँगा क्यों की मुझे दोस्ती निभाना आता है.अब तो पुलिस भी सकते में आ गयी दो चार थप्पड़ देने पर चोर ने अपनी अंगुली उस व्यक्ति के तरफ कर दिया जो बहुत देर से चोर के अपमान का नया नया तरीका ढूंढ़ रहा था
कहानी का अंत यहीं नहीं होता है आगे क्या हुआ होगा आप भी अंदाज़ा लगा सकते हें.


सावधान कहीं आपके साथ ऐसा न हो जाए.

Monday, March 28, 2011

जन्म से मृत्यु के छण तक..."एक प्रतीक्षा "...अरशद अली

दरवाजे पर खड़ा
यही सोंचता हूँ...
दूर राह से तुम आओगे..
और प्रतिक्षा की
कई करवटें बदल जाते हें
देहरी भी थक कर ..
उबासी लेती है..
और मै एक चरण के प्रतिक्षा
से दुसरे चरण के प्रतिक्षा में
प्रवेस कर जाता हूँ
सोंचता हूँ मेरी प्रतिक्षा
अनावश्यक तुम्हारी पीछा
करती रहती है

पोस्टमैन दरवाजे तक आकर
नमस्कार मात्र करता है
जो पुरानी जान पहचान
का एक संकेत है
उसके आने पर
तुम्हारे लिखित संवाद
की प्रतिक्षा चरम पर होती है.
और पुनः प्रतिक्षा के कई
करवट बदल जाते हें.
बदलते मौसम में
एक मेरी प्रतीक्षा नहीं बदलती.
क्योंकि मेरी प्रतिक्षा हीं
मेरे प्रेम का सूचक है
और तुम्हारा प्रतिक्षा करवाना
मेरे प्रेम की परीक्षा
और इन्ही सब में छुपी मेरे उत्तीर्ण
होने की इच्छा
धकेलती है मुझे
एक लम्बे प्रतिक्षा पथ पर
प्रारंभ से अंत तक
पुर्ब से अनंत तक
जन्म से मृत्यु के छण तक..............................


अरशद अली

Sunday, March 20, 2011

तुम तो लक्ष्मी थी...सारा बैभव ले गयी

शांत घर,सिर्फ तुम्हारे जाने से नहीं हुआ
तुम तो लक्ष्मी थी...सारा बैभव ले गयी

एक सिंदूर पड़ते हीं
तुम्हारा गावं बदल गया
और बदल गयी तुम्हारी पहचान ..

मुझे याद है,
तुम्हारे आने पर ,तुम्हारी माँ
अकेले जश्न मनाई थी
और मेरी माँ चिंतित दिखी थी ..

कल वो भी रो पड़ी थी
शायद वो तुम्हारे स्नेह का
उमड़-घुमड़ था
या एक बोझ उतर जाने के ख़ुशी

अब सब शांत है और कान चौकन्ना,
तुम्हारी एक आवाज़ सुनने को ..
जो शायद न मिले
और मिले भी तो सजी हुई
किसी और के धुन में ..

अब तो तुम्हारा इंतज़ार भी
किसी और के लिए है
नहीं तो बचपन में घंटों
अपने बाबा का बाट जोहती थी

तुम्हारे हठ से झुंझलाने के क्रम में भी
तुम हठ करना नहीं भूलती थी
और मै पूरा करने से नहीं चूकना चाहता था
अब उसी हठ को तरसता हूँ ...

तुम बेटी थी,तुम बहन थी
और कभी-कभी माँ जैसा दुलार भी दिया था तुमने
जब मै बुखार से तपता था
बेटी,बहन को बिदा किया ,समाज के नियमों पर
मगर नन्ही हांथों वाली
उस माँ को तरसता हूँ

प्रतेक दिन तुम नयी जिम्मेदारियों को
समझते जाओगी ,मुझे पूर्ण विश्वास है
और मै जर्जर तुम्हे बड़ी होते हुए देखूंगा
और एक दिन तुम केंद्र में होगी
जैसे आज तुम्हार माँ है ..
जिसने मुझे-तुम्हे आज तक सहेजा..और आगे भी सहेजेगी ..

आज तुम उर्वर हो
और मै वो आम का पेड़,
जिसपर वो आम नहीं
जिससे मेरी पहचान थी....

तुम तो लक्ष्मी थी ....
सारा बैभव ले गयी ........


अरशद अली

Thursday, March 3, 2011

निरंजन बीमार है......बहुत बीमार ........उसे आपके दुवाओं की ज़रूरत है

निरंजन बीमार है......बहुत बीमार ........उसे आपके दुवाओं की ज़रूरत है



मेरे पड़ोस में चाय की एक छोटी सी दुकान चलने वाले सुदामा भाई का छोटा लड़का निरंजन (5 वर्ष) कैंसर से पीड़ित है....
इलाज के दौरान उसका दाहिना आँख निकलना पड़ा....मगर कैंसर अपना रंग दिखला रहा है.....बात आगे बढ़ गयी है...पुनः
उसे अस्पताल में भर्ती किया गया है.....

जब वो ठीक था तो मेरे ऑफिस के सामने हीं खेलता रहता था......अंदाज़ कुछ ऐसा की मन मोह ले .......मै सुदामा भाई से चाय लाने ले जाने के क्रम में यही कहता था की इसका नाम बम भोला रख दीजिये ......एक दम शांत बच्चा मगर मस्ती में कब ज़मीं में लोटने लगे कोई नहीं जानता.......रंग वही क्रष्ण भगवन वाला....हरकत शंकर भागवान वाली.....बोलने में थोडा कंजूस ......दस बार पूछने पर एक टुक भोजपुरी में जवाब देना और फिर लम्बे समय तक चुप-चाप किसी दुसरे बदमाशी की तेयारी में लग जाना........एक बार अंगूर वाले से अंगूर खरीद कर उसे दिया था .......उसके बाद जब भी अंगूर वाला ऑफिस के आस पास आता निरंजन भाग कर मेरे ऑफिस के सामने आकर खड़ा हो जाता.......शुरू शुरू में तो मुझे समझ में नहीं आया मगर बहुत जल्द समझ गया की निरंजन का आना अंगूर वाले के आने की निशानी है.......ऐसी कई बात मुझे याद आती है जिससे मै अपने बचपन में गोते लगा लेता हूँ......

मगर शायद खुदा को कुछ और मंज़ूर था.......अभी वो कलकत्ता के किसी अस्पताल में अपने बीमारी से लड़ रहा है......उसे पैसे की ज़रूरत है ........सरकार की मदद की प्रक्रिया इतनी सुस्त है की मुझे अपने कुछ साथियों के मदद से उसके इलाज के लिए पैसे बटोरने का काम अपने ऑफिस से टाइम चुरा कर करना ज्यादा अच्छा लगा .....और आप सभी को जान कर सुखद एहसास होगा की लोग बहुत बढ़-चढ़ कर निरंजन के हेल्प में खड़े हो रहे हें.....मगर दुआओं की ज़रूरत अभी भी है.....

आप सभी की दुआ उसे मजबूती देगी मुझे इस पर यकीन है ......और निरंजन वापस उसी अंदाज़ में मेरे ऑफिस के सामने
खेलता नज़र आएगा...आपको क्या लगता है???