आज शर्मा जी चाय की दुकान पर नहीं आये .कल हीं बतला रहे थे की बेटी के ससुराल जाना है,शादी को एक वर्ष भी नहीं गुजरा और लेन-देन को लेकर ससुराल वालों की प्रताड़ना शुरू हो गयी.शायद कुछ समझौता करना पड़े.कोई रास्ता तो निकलना होग अन्यथा बेटी को कुछ दिनों के लिए बिदाई करवा लूँगा.
मुझे याद है शर्मा जी अपनी बच्ची की शादी तय करके आये थे तो बहुत प्रशन्न थे.चाय सूदुकते हुए पूछने पर उन्होंने बतलाया की लड़का इंजिनियर है,एक नामी कंपनी में अच्छे पैसे पर जॉब करता है परिवार भी पढ़ा लिखा है. लेन-देन के बिषय में प्रश्न करने शर्मा जी थोड़े खीजे-खीजे से दिखे.कहने लगे लड़की वालों पर तो लेन-देन का बोझ होता हीं है.
मुझे थोडा आश्चर्य हुआ कयोंकि कभी शर्मा जी ने हीं कहा था,जिस घर में लेन-देन के आधार पर शादी के बात होती हो उस घर में बेटी नहीं ब्याहुंगा .मै मन हीं मन शर्मा जी की दल-बदल निति के कारणों पर मंथन प्रारंभ करना चाहा तो,शर्मा जी ने फैली चुप्पी को तोड़ते हुए कहा,जनाब मै आपके अन्दर के उथल पुथल को अनुभव कर रहा हूँ.
आप यही प्रश्न करना चाहते हें न की मै लेन-देन प्रथा को क्यों बढ़ावा दे रहा हूँ.
मै हामी भरते हुए उन्हें सुनने के लिए तैयार हो गया.
आपको तो मेरी सुलेखा के बिषय में जानकारी तो है हीं उसके जन्म से अब तक मुझे उसके पिता होने का गर्व रहा है .उसके बी .ऐड होने के बाद से एक अच्छा वर तलाश रहा हूँ और यह तलाश अन्य लड़की वालों को भी होता है,फलस्वरूप अच्छे लड़के की खरीद का चलन अपने समाज का प्रचलन हो गया है.परन्तु मैंने लेन-देन पर सहमती नए जोड़े का घर बसाने के उद्देश्य से किया है.इसे अपनी बच्ची के घर बसाने में मेरे द्वारा अंशतः आर्थिक सहयोग माना जाए न की ये समझा जाए की मैंने पैसे की बल पर अपनी बच्ची की शादी कर रहा हूँ.मैंने शर्मा जी पूछा,क्या लेन-देन आपकी सहमती से तय हुआ है अन्यथा आपपर एक दबाव डाला गया है.यदि बच्ची की शादी से सम्बंधित आर्थिक लेन -देन में आपकी इच्छा सम्मलित है तो इस बिषय पर मुझे भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए .परन्तु यदि यह एक दबाव है तो मै आपको पुनः चिंतन करने का आग्रह करूँगा.
शर्मा जी लम्बी साँस भरते हुए बहुत भाऊक होकर कहने लगे,समाज के रीती रिवाजों में जहाँ कई अच्छी प्रथाओं ने भारत के संस्कृति को एक ऊंचाई दी है वहीँ कुछ प्रथाओं से बुराइयों का जन्म भी हुआ है.मुझे भी नहीं पता की मैंने लड़के वालों की मांग ख़ुशी से,मज़बूरी में या एक अच्छे लड़के के हाँथ से निकल जाने की डर में दे रहा हूँ.परन्तु एक बात तो सच की मुझे भी डर लगता है,ऐसे लोगों से जो लड़की के गुणों को देखने से पहले लड़की वालों से एक टुक लेन- देन की बात करना ज़रूरी समझते हें. रहा सवाल पुनः चिंतन की तो अंत तक मै हाँथ मलता रह जाऊँगा.
दस-बारह लाख खर्च करने के बाद भी लड़की सुखी रहे तो मै गंगा नहा लूँगा.
मैंने शर्मा जी को सहानुभूति स्पर्श देते हुए इतना हीं कह पाया की आप चिंता ना करें सब कुछ अच्छा रहेगा.
आज मै यही सोंचता हूँ की उस दिन के शर्मा जी ज्यादा मजबुर थे या आज कल के शर्मा जी.
चिंतन उसी समय कर लिया गया होता तो शायद आज पुनःचिंतन की आवश्यकता नहीं होती
क्यों चिंतन की आवश्यकता नहीं लगती आप सभी लड़की वालों को .
--अरशद अली ---
5 comments:
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
चिंतन, गहन चिंतन की आवश्यकता है।
चिंतन की तो आवश्यकता है ही .. पर किसी एक व्यक्ति से कुछ नहीं होनेवाला .. पूरे समाज को करनी होगी !!
चिंतन की आवश्यकता तो है अरशद जी .... पर यह चिंतन लड़के वालों को ज़्यादा करना है न की लड़की वालों को ... क्योंकि आज भी हमारा समाज एक पुरुष समाज है, लड़के का पक्ष हावी रहता है .... अगर ये बात लढ़के वाले सोचें तो ज़्यादा उचित होगा .... फिर समाज क्या व्यक्तिगत स्तर पर भी समस्या का निवारण हो जाएगा .......
अरशद क्या कहूँ....एक लड़की के पिता की मजबूरी तो बिचारा वही समझ सकता है....इतने क़र्ज़ के बोझ तले दब कर अपनी बेटी की शादी करता है...और फिर भी बेटी सुखी नहीं रह पाती...और दहेज़ प्रथा ने अपनी जड़ें इतनी गहरी जमा रखी हैं कि अगर वह समझौता ना करे तो बेटी की शादी ही ना हो पाए...
तुम्हारी ऐसी समझदारी देख मन खुश हो गया...समाज को तुम जैसी सोच वाले नौजवान की ही जरूरत है...मेरी दुआएं तुम्हारे साथ हैं...तुम्हारा email id नहीं मिला वरना तुम्हे सॉरी बोलना था,इतनी देर से तुम्हारे ब्लॉग पे आने के लिए....चाहो तो इस पे संपर्क करना ..rashmeeravija26@gmail.com
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