उम्र के हिसाब से ये कविता मुझे नहीं लिखनी चाहिए थी मगर मुझे नहीं पता मैंने ऐसा क्यों सोंचा और कैसे कैसे ये कविता कागज पर उतर आये...
एक सत्य
मृत्यू सत्य है,डर जाओगे
तुम भी एक दिन मर जाओगे
बचपन के डर को मरते देखा
फिर बचपन को मरते देखा
युवा में सब नया नया सा
कुछ बर्षों तक साथ रहा था
इच्छाओं को मरता पाकर
अपनी जवानी मरते देखा
फिर प्रोढ़ हुआ जिमेदारी आई
हर शौख को मारा फ़र्ज़ निभाई
हर फ़र्ज़ को पूरा होते पाकर
हर सफ़र यूं हीं ठहरते देखा
फिर खुद को खुद से डरते देखा
इस सत्य से तुम भी डर जाओगे
तुम भी एक दिन मर जाओगे .
--अरशद अली--
5 comments:
अटल अमर सार्वभोमिक सत्य ....अद्भुत वर्णन !!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
जीवन की एक सच्चाई है यह....बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
भाई ज़िन्दगी के बारे में लिखो बहुत कुछ करना बाकी है साहित्य दुनिया में .आपके ब्लॉग की सभी रचनाये आज पढ़ी,बहुत उम्दा हैं,
शुभकामनाये
युवा में सब नया नया सा
कुछ बर्षों तक साथ रहा था
इच्छाओं को मरता पाकर
अपनी जवानी मरते देखा ..
बहुत ही सुन्दरता से आपने जीवन की सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
बहुत सुन्दर रचना। बधाई!!
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