Monday, May 10, 2010

कुछ पंक्तियाँ भेट करना चाहूँगा ,शायद आपको थोडा आराम मिले

जीवन दीपक जलते जलते
थक कर एक दिन बुझ जायेगा
अन्धकार जो मिट न पाया
अंत प्रकाश में मिट जायेगा
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छन्भंगुर एहसास
नित नए रंगों में
बनते टूटते नए नए
जाने कितने ख़वाब

राजा बन मन गढ़ंत
न तख़्त न ताज
रंक रंक के शोर में
दबते सब आवाज़

प्रतीक्षा जीवन से लम्बी
पर्वत सा बिश्वास
सब खोया एक एक कर
फिर भी मन को आस .

4 comments:

kunwarji's said...

sundar panktiya!

kunwar ji,

संजय भास्‍कर said...

हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

राजा बन मन गढ़ंत
न तख़्त न ताज
रंक रंक के शोर में
दबते सब आवाज़

प्रतीक्षा जीवन से लम्बी
पर्वत सा बिश्वास
सब खोया एक एक कर
फिर भी मन को आस .

Sundar arsad ji , haan क्षणभंगूर ko theek kar le to behtar !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से कही सटीक बात....अच्छा लगा..


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http://geet7553.blogspot.com/