जीवन दीपक जलते जलते
थक कर एक दिन बुझ जायेगा
अन्धकार जो मिट न पाया
अंत प्रकाश में मिट जायेगा
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छन्भंगुर एहसास
नित नए रंगों में
बनते टूटते नए नए
जाने कितने ख़वाब
राजा बन मन गढ़ंत
न तख़्त न ताज
रंक रंक के शोर में
दबते सब आवाज़
प्रतीक्षा जीवन से लम्बी
पर्वत सा बिश्वास
सब खोया एक एक कर
फिर भी मन को आस .
4 comments:
sundar panktiya!
kunwar ji,
हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
राजा बन मन गढ़ंत
न तख़्त न ताज
रंक रंक के शोर में
दबते सब आवाज़
प्रतीक्षा जीवन से लम्बी
पर्वत सा बिश्वास
सब खोया एक एक कर
फिर भी मन को आस .
Sundar arsad ji , haan क्षणभंगूर ko theek kar le to behtar !
बहुत खूबसूरती से कही सटीक बात....अच्छा लगा..
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http://geet7553.blogspot.com/
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