Monday, March 28, 2011

जन्म से मृत्यु के छण तक..."एक प्रतीक्षा "...अरशद अली

दरवाजे पर खड़ा
यही सोंचता हूँ...
दूर राह से तुम आओगे..
और प्रतिक्षा की
कई करवटें बदल जाते हें
देहरी भी थक कर ..
उबासी लेती है..
और मै एक चरण के प्रतिक्षा
से दुसरे चरण के प्रतिक्षा में
प्रवेस कर जाता हूँ
सोंचता हूँ मेरी प्रतिक्षा
अनावश्यक तुम्हारी पीछा
करती रहती है

पोस्टमैन दरवाजे तक आकर
नमस्कार मात्र करता है
जो पुरानी जान पहचान
का एक संकेत है
उसके आने पर
तुम्हारे लिखित संवाद
की प्रतिक्षा चरम पर होती है.
और पुनः प्रतिक्षा के कई
करवट बदल जाते हें.
बदलते मौसम में
एक मेरी प्रतीक्षा नहीं बदलती.
क्योंकि मेरी प्रतिक्षा हीं
मेरे प्रेम का सूचक है
और तुम्हारा प्रतिक्षा करवाना
मेरे प्रेम की परीक्षा
और इन्ही सब में छुपी मेरे उत्तीर्ण
होने की इच्छा
धकेलती है मुझे
एक लम्बे प्रतिक्षा पथ पर
प्रारंभ से अंत तक
पुर्ब से अनंत तक
जन्म से मृत्यु के छण तक..............................


अरशद अली

5 comments:

rashmi ravija said...

और इन्ही सब में छुपी मेरे उत्तीर्ण
होने की इच्छा
धकेलती है मुझे
एक लम्बे प्रतिक्षा पथ पर
प्रारंभ से अंत तक
पुर्ब से अनंत तक
जन्म से मृत्यु के छण तक

बहुत ही सार्थक पंक्तियाँ...बढ़िया अभिव्यक्ति

Amit Chandra said...

अरशद भाई पहली बार आपको पढ़ रहा हुॅ। अच्छी रचना है आपकी। प्यार में इतंजार के पलों को बहुत अच्छी तरह से सवारा है आपने। आभार।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

क्योंकि मेरी प्रतिक्षा हीं
मेरे प्रेम का सूचक है
और तुम्हारा प्रतिक्षा करवाना
मेरे प्रेम की परीक्षा
और इन्ही सब में छुपी मेरे उत्तीर्ण
होने की इच्छा
धकेलती है मुझे
एक लम्बे प्रतिक्षा पथ पर
प्रारंभ से अंत तक

अंतर्मन की पीड़ा ... बहुत बढ़िया

ZEAL said...

किसी अपने का इंतज़ार तो इतनी ही शिद्दत से होता है ...

Richa P Madhwani said...

nice..