युक्ति उसे सूझती है,
जो अभाव में जीता है
तुम पियो मिनरल वाटर
वो बारिश का पीता है
छत पर और एक घर बना कर
होम लोने लेने का चक्कर
उसको देखो "मस्त कलंदर"
खुली आकाश में सोता है
जिस धागे से सिले चटाई
उसी धागे से कुरता उसका
तुम सूट का वज़न उठाओ
वो शारीर हीं ढोता है
एक रोटी गरीब को देकर
तुम इश्वर का रूप धरो
वो अतिथि के आने पर
भूखे पेट हीं सोता है
तुम डरते हो खो देने पर
तुम डरते हो कम पाने पर
उसको देखो वो पागल,
अपनी इज्ज़त से डरता है
दर्द तुम्हारे देखे भाले ..जिसको कह दो वही उठाले
वो तो एक रमता जोगी है ..फटी बिवाई पड़े हैं छाले
तुम सोकर लड़ते हो सुख से
वो दुःख से लड़ कर सोता है
-----अरशद अली---
4 comments:
बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई
kamaal hai arshad bhai!
arshad bhai bhut hi marmik our bhavpoorn kvita. bhut achchha likh rhe hai aap . maine aapki kai pichhli post bhi dekhi . likhte rhiyega .
bahut achcha
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