वर्ष के सभी दिन महत्वपूर्ण हैं ,ऐसा मैंने बड़ों से सुना है ..मगर कुछ दिन ऐसे होते हैं जो इतिहास रच देते हैं ....
समय बीत जाता है मगर वो गुजरे दिन ज़िन्दगी के एक अहम् मोड़ की तरह पुरे ज़िन्दगी को सकारात्मक सवरूप प्रदान कर देतें हैं।
उन यादों को याद करना अंतर मन को ताज़ा करता है।
आज कुछ ऐसा हीं दिन है।
1 दिसम्बर 2010, एक नन्ही परी "एंजिला " का जन्म हुआ था। आज वो दो वर्षों की हो गई ....... समय रुकता नहीं ..और अपने साथ कई रहस्यों को छुपाये हुए है। लोग पूछते हैं "एंजिला " कौन है ? और मै उत्तर तलाशने लगता हूँ।
वो तो एक परी है !
नहीं वो मेरी बेटी है।
नहीं-नहीं इससे भी कोई बड़ी बात हो ,इससे भी कोई सटीक उपमा हो तो वो कहना पसंद करूँगा ......सीधे शब्दों में , वो मेरी जान है ..............
मुझे याद है अमजद भैया का फोन आया था ..."अरशद" तुम चाचा बन गए ! बेटी हुई है!
अलहम्दो -लिल्लाह .....कहा नहीं की चटक रंगों की एक बाल्टी जैसे किसी ने मेरे ऊपर उड़ेल दिया ...कानों में संगीत घुलने लगे ...मन में आतिशबाजियां शुरू हो गयीं ......
कहते हैं मन बड़ा कल्पनाशील होता है ....और कल्पना के घोड़े दौड़ पड़े ..अपनी नन्ही को देखने ...टटोलने ...मैंने भाई साहब से बस यूं हीं पूछा कैसी है वो ...फिर जाने भैया ने क्या कहा और मैंने क्या सुना ....कल्पनाएँ आकर ले चुकी थी , मेरी बेटी ज़रूर अपनी छोटी बुआ "बबली" जैसी होगी सोंच कर मैंने उसे लॉक कर दिया।
बबली (छोटी बहन) का जन्म मुझे याद नहीं मगर बचपन बिलकुल याद है ..शरारती ,हाजिर जवाब , बेहद खुबसूरत , और चंचल ....
बबली का जन्म 1982 में हुआ ....उसके बाद मेरे खानदान में ये दूसरी बबली "एंजिला "का 2010 में जन्म एक उत्सव की शुरुआत थी। करीब-करीब 28 वर्षों के बाद एक लड़की का जन्म उत्सव से महा-उत्सव में कैसे बदल गया मुझे पता हीं नहीं चला ....भैया का फोन आया ...बात हुई ... और भैया ने फोन रख भी दिया और मै जहाँ खड़ा था थोड़ी देर वहीँ खड़ा रह गया।
माँ को मैंने उछलते हुए कहा "माँ तुम दादी बन गयी ! और फिर माँ की सकारात्मक दुआओं से भरी बड -बड सुनने को मै वहां रुकने के मुड़ में नहीं था ... बस इतना महसूस किया की माँ खुश थी। भागते हुए पापा को कहा ...तुरंत यह सुखद समाचार जंगल में आग की तरह फैल गयी।
पापा के उत्सव मानाने का तरीका थोडा अलग है ......कोई ख़ुशी हो या गम वो एक दम शांत हो जातें हैं
दो रकात शुक्राने की नमाज़ अदा की और मिठाई बटवाने की तेयारी शुरू हो गयी .........
पापा एक सामाजिक इन्सान है और अनुभवी इतना की हम लोग उन्हें देखते रह जाते हैं ...और एंजिला के मामले में उनका एक सधा हुआ ख़ुशी से भरा चेहरा देखने लायक था ....ऐसे भी बात कोई साधारण नहीं थी वो दादा बने थे .............घर का माहोल बेहद रंगीन हो चूका था।
फिर फोन का दौर शुरू हुआ ...भाई साहब मुंबई से बूंदी राजस्थान के तरफ रवाना हो चुके थे ...एंजिला बूंदी में थी अपनी नानी के घर ...... और हमसभी बोकारो (झारखण्ड) में थे ...ऐसा लग रहा था उड़ कर अपनी बच्ची के पास पहुँच जाता तो मज़ा आ जाता .....इस कमी को दूर करने के लिए फोन की मदद ली जा रही थी ......मुझे याद है ...भाभी से अगले दिन बात हो पाई थी मैंने उनसे पूछा की बाबु किसके जैसी दिखती है तो भाभी ने कहा था ..."बिलकुल तुम्हारे जैसी " भाभी झूठ बोल रही थी ....मेरी कल्पना के अनुसार वो बबली जैसी थी ...मगर ये झूठ बहुत प्यारा था .....
आज मेरी बेटी दो साल की हो गयी ...बिलकुल बबली पर गयी है .......अल्लाह उसे और सवारे ......बुलंदी दे .....और हम सभी उसे बड़ी होते हुए देखें।
कहते है रमजान के अंतिम दिनों में चाँद को देखना ईद की आमद है।
सवा महीने के बाद अपने चाँद को बूंदी जाकर देखा ...कलेजे को ठंडक पहुची .....और मैंने भाभी को कहा "भाभी ये तो बिलकुल बबली पर गयी है" ...भाभी ने हाँ कहा और मेरी सारी कल्पनाओं को एक धरातल मिला ......कल एंजिला से फोन पर बातें हुईं ...........जाने वो तोतली भाषा में क्या कही ........मगर उसे नहीं पता मै उसकी सभी शब्दों को समझ गया ...........वो मुझे यही कह रही थी छोटे पापा ........अब तुम्हारी हीरो गिरी नहीं चलेगी .......अब मेरी बदमाशियों का दौर शुरू होने वाला है ...............और बहुत सी बातें मन में उमड़ घुमड़ रही है फिर कभी .......
------अरशद अली -----
समय बीत जाता है मगर वो गुजरे दिन ज़िन्दगी के एक अहम् मोड़ की तरह पुरे ज़िन्दगी को सकारात्मक सवरूप प्रदान कर देतें हैं।
उन यादों को याद करना अंतर मन को ताज़ा करता है।
आज कुछ ऐसा हीं दिन है।
1 दिसम्बर 2010, एक नन्ही परी "एंजिला " का जन्म हुआ था। आज वो दो वर्षों की हो गई ....... समय रुकता नहीं ..और अपने साथ कई रहस्यों को छुपाये हुए है। लोग पूछते हैं "एंजिला " कौन है ? और मै उत्तर तलाशने लगता हूँ।
वो तो एक परी है !
नहीं वो मेरी बेटी है।
नहीं-नहीं इससे भी कोई बड़ी बात हो ,इससे भी कोई सटीक उपमा हो तो वो कहना पसंद करूँगा ......सीधे शब्दों में , वो मेरी जान है ..............
मुझे याद है अमजद भैया का फोन आया था ..."अरशद" तुम चाचा बन गए ! बेटी हुई है!
अलहम्दो -लिल्लाह .....कहा नहीं की चटक रंगों की एक बाल्टी जैसे किसी ने मेरे ऊपर उड़ेल दिया ...कानों में संगीत घुलने लगे ...मन में आतिशबाजियां शुरू हो गयीं ......
कहते हैं मन बड़ा कल्पनाशील होता है ....और कल्पना के घोड़े दौड़ पड़े ..अपनी नन्ही को देखने ...टटोलने ...मैंने भाई साहब से बस यूं हीं पूछा कैसी है वो ...फिर जाने भैया ने क्या कहा और मैंने क्या सुना ....कल्पनाएँ आकर ले चुकी थी , मेरी बेटी ज़रूर अपनी छोटी बुआ "बबली" जैसी होगी सोंच कर मैंने उसे लॉक कर दिया।
बबली (छोटी बहन) का जन्म मुझे याद नहीं मगर बचपन बिलकुल याद है ..शरारती ,हाजिर जवाब , बेहद खुबसूरत , और चंचल ....
बबली का जन्म 1982 में हुआ ....उसके बाद मेरे खानदान में ये दूसरी बबली "एंजिला "का 2010 में जन्म एक उत्सव की शुरुआत थी। करीब-करीब 28 वर्षों के बाद एक लड़की का जन्म उत्सव से महा-उत्सव में कैसे बदल गया मुझे पता हीं नहीं चला ....भैया का फोन आया ...बात हुई ... और भैया ने फोन रख भी दिया और मै जहाँ खड़ा था थोड़ी देर वहीँ खड़ा रह गया।
माँ को मैंने उछलते हुए कहा "माँ तुम दादी बन गयी ! और फिर माँ की सकारात्मक दुआओं से भरी बड -बड सुनने को मै वहां रुकने के मुड़ में नहीं था ... बस इतना महसूस किया की माँ खुश थी। भागते हुए पापा को कहा ...तुरंत यह सुखद समाचार जंगल में आग की तरह फैल गयी।
पापा के उत्सव मानाने का तरीका थोडा अलग है ......कोई ख़ुशी हो या गम वो एक दम शांत हो जातें हैं
दो रकात शुक्राने की नमाज़ अदा की और मिठाई बटवाने की तेयारी शुरू हो गयी .........
पापा एक सामाजिक इन्सान है और अनुभवी इतना की हम लोग उन्हें देखते रह जाते हैं ...और एंजिला के मामले में उनका एक सधा हुआ ख़ुशी से भरा चेहरा देखने लायक था ....ऐसे भी बात कोई साधारण नहीं थी वो दादा बने थे .............घर का माहोल बेहद रंगीन हो चूका था।
फिर फोन का दौर शुरू हुआ ...भाई साहब मुंबई से बूंदी राजस्थान के तरफ रवाना हो चुके थे ...एंजिला बूंदी में थी अपनी नानी के घर ...... और हमसभी बोकारो (झारखण्ड) में थे ...ऐसा लग रहा था उड़ कर अपनी बच्ची के पास पहुँच जाता तो मज़ा आ जाता .....इस कमी को दूर करने के लिए फोन की मदद ली जा रही थी ......मुझे याद है ...भाभी से अगले दिन बात हो पाई थी मैंने उनसे पूछा की बाबु किसके जैसी दिखती है तो भाभी ने कहा था ..."बिलकुल तुम्हारे जैसी " भाभी झूठ बोल रही थी ....मेरी कल्पना के अनुसार वो बबली जैसी थी ...मगर ये झूठ बहुत प्यारा था .....
आज मेरी बेटी दो साल की हो गयी ...बिलकुल बबली पर गयी है .......अल्लाह उसे और सवारे ......बुलंदी दे .....और हम सभी उसे बड़ी होते हुए देखें।
कहते है रमजान के अंतिम दिनों में चाँद को देखना ईद की आमद है।
सवा महीने के बाद अपने चाँद को बूंदी जाकर देखा ...कलेजे को ठंडक पहुची .....और मैंने भाभी को कहा "भाभी ये तो बिलकुल बबली पर गयी है" ...भाभी ने हाँ कहा और मेरी सारी कल्पनाओं को एक धरातल मिला ......कल एंजिला से फोन पर बातें हुईं ...........जाने वो तोतली भाषा में क्या कही ........मगर उसे नहीं पता मै उसकी सभी शब्दों को समझ गया ...........वो मुझे यही कह रही थी छोटे पापा ........अब तुम्हारी हीरो गिरी नहीं चलेगी .......अब मेरी बदमाशियों का दौर शुरू होने वाला है ...............और बहुत सी बातें मन में उमड़ घुमड़ रही है फिर कभी .......
------अरशद अली -----
4 comments:
एंजेला को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई, अनेको आशीर्वाद और ढेरो प्यार,
वो वैसे ही अपने छोटे पापा का प्यार पाती रहे और उनकी हिरोगिरी कम करती रहे )
आपको सपरिवार बेटी के दूसरे जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं |
आशा
सुन्दर बात
अपने छोटे पापा का प्यार पाती रहे, Arshad, This is truth, you love every one...........I wish you for every one
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