गाँव के अन्य लड़कों के साथ
मंदिर निर्माण के लिए चन्दा
लेते " मोहम्मद अली "
भावुक हो जाते थे
पूछने पर यही कहते थे
"भगवान का घर बन रहा है "
सादिक इसका बिरोध करते थे ।
श्रीकांत सिंह हमेशा
अपना पानी लेकर चलते थे
किसी अन्य के हाथों से
जल तक ग्रहण नहीं करते थे
सूर्यकान्त सिंह इसका बिरोध करते थे ।
सादिक ,सूर्यकांत के खेत
एक पानी से सिचते थे
और पानी के लिए आय दिन कहासुनी
हो जाती थी
दोनों पुलिस से डरते थे ।
कुछ घर के बच्चे
मिया टोली के बच्चे जितना उपेछित दिखते थे
परन्तु भुनेश्वेर झा विद्यालय में
एक सामान पढ़ाते थे ।
और कभी-कभी मास्टर साहब के
प्रयास से फुटबाल मैच में
सभी घर के बच्चे दिख जाते थे
कोई इसका बिरोध नहीं कर पाता था।
इस तरह गंगा किनारे बसे मेरे गाँव में
कई अन्तः द्वन्द रहते हुए भी
शांति बनी रहती थी
और बिविध उतार चढ़ाव में
एक संतुलन बना रहता था
और सभी बड़ों का सम्मान करते थे
चाहे वो किसी भी वर्ग के हों
होली में
गाँव के मध्य
एक हीं गड्ढा बनाया जाता था
सभी के लिए
और सभी गंगा में नज़र आते थे
सने कीचड़ और रंग छुडाते हुए
और पानी के लिए आय दिन कहासुनी
हो जाती थी
दोनों पुलिस से डरते थे ।
कुछ घर के बच्चे
मिया टोली के बच्चे जितना उपेछित दिखते थे
परन्तु भुनेश्वेर झा विद्यालय में
एक सामान पढ़ाते थे ।
और कभी-कभी मास्टर साहब के
प्रयास से फुटबाल मैच में
सभी घर के बच्चे दिख जाते थे
कोई इसका बिरोध नहीं कर पाता था।
इस तरह गंगा किनारे बसे मेरे गाँव में
कई अन्तः द्वन्द रहते हुए भी
शांति बनी रहती थी
और बिविध उतार चढ़ाव में
एक संतुलन बना रहता था
और सभी बड़ों का सम्मान करते थे
चाहे वो किसी भी वर्ग के हों
होली में
गाँव के मध्य
एक हीं गड्ढा बनाया जाता था
सभी के लिए
और सभी गंगा में नज़र आते थे
सने कीचड़ और रंग छुडाते हुए
गंगा इसका बिरोध नहीं करती थी
कीचड़ धुलते हीं
स्वतः वर्गीकृत हो जाते थे लोग
अगली होली तक
आज इतने वर्षो बाद
गाँव गाँव नहीं लगा
मंदिर के लंगर लिए चन्दा काटने
वालो में अब वो जोश नहीं दिखता
श्रीकांत सिंह नहीं रहे ...
और उनकी नियमों को भी उनके जाने के बाद
किसी ने किसी में नहीं देखा
सूर्यकान्त सिंह बड़े बेटे के साथ
शहर में रहते हैं
और सादिक अपने घर में
अब शायद हीं दोनों आपस में मिल पायें
वो मैदान अब नहीं रहा
जहाँ भुनेश्वेर झा फ़ुटबाल मैच करवाते थे
और बच्चे भी क्रिकेट देखना पसंद करते हैं
अब होली होली नहीं लगती
अब गाँव गाँव नहीं लगता .............
----अरशद अली-----
कीचड़ धुलते हीं
स्वतः वर्गीकृत हो जाते थे लोग
अगली होली तक
आज इतने वर्षो बाद
गाँव गाँव नहीं लगा
मंदिर के लंगर लिए चन्दा काटने
वालो में अब वो जोश नहीं दिखता
श्रीकांत सिंह नहीं रहे ...
और उनकी नियमों को भी उनके जाने के बाद
किसी ने किसी में नहीं देखा
सूर्यकान्त सिंह बड़े बेटे के साथ
शहर में रहते हैं
और सादिक अपने घर में
अब शायद हीं दोनों आपस में मिल पायें
वो मैदान अब नहीं रहा
जहाँ भुनेश्वेर झा फ़ुटबाल मैच करवाते थे
और बच्चे भी क्रिकेट देखना पसंद करते हैं
अब होली होली नहीं लगती
अब गाँव गाँव नहीं लगता .............
----अरशद अली-----
3 comments:
बिल्कुल सही कहा है .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
वो मैदान अब नहीं रहा
जहाँ भुनेश्वेर झा फ़ुटबाल मैच करवाते थे
और बच्चे भी क्रिकेट देखना पसंद करते हैं
अब होली होली नहीं लगती
अब गाँव गाँव नहीं लगता .............
..कमोवेश ऐसी व्यथा सुदूर बसे गाँव तक पहुँच गयी हैं, जिसे देख बहुत दुःख होता है की आखिर हम प्रकृति जैसा व्यवहार क्यों नहीं कर पाते ..वह तो आपस में कभी नहीं लड़ते झगड़ते ..बस अपना सर्वस्व हम पर निछावर करते हैं ...
बहुत बढ़िया चिंतनशील रचना ...
Nice
Post a Comment