शहरी रंग बेरंग से
धूसर मिटटी गावं की
धुप शहर की शूल सरीखी
इच्छा आम के छाव की
हाय-हेलो की चकाचौंध में
स्पर्श बड़ों के पावँ की
अंग्रेजी के कावं-कावं में
मीठी बोली गावं की
शाम की बर्गर,रात की पिज्जा
पानी पूरी कोको कोला
दाल-भात में चोखा-चटनी
खाना मेरे गावं की
रिश्तों के भटकाव में
बचपन कुंठा पाल रहा
चाचा- चाची बुआ दादी
याद कराते गावं की
शहर के चौराहों पर
झूठी शान हजारों के
गावं में देखा है मैंने
कांख में चप्पल पावं की
च हु ओर एक शोर शराबा
तन्हा-तन्हा सारे लोग
एक तन्हाई मिल न पाई
खाख जो छाना गावं की
कुछ शहरी यादों में पाया
खारापन या एक दिखावा
शहरी होकर भूल न पाया
मीठी यादें गावं की
9 comments:
arshad saahab is kavita ke liye mubaarakbaad!!!
aapne ye kavita likh kar saabit kar diya hai ki mitti ki khushbu aur jadon(roots)ki mahak se wo insaan kabhi kat nahi sakta jisme insaaniyat zinda hai.
वाह वाह अरशद जी - सहज और सरल शब्दों में पिरोई हुई गाँव की मिट्टी की खुशबू लिए. क्या और कितनी तारीफ करूँ, पोर-पोर में समा गई आपकी ये शानदार कविता? बहुत बहुत बधाई.
कुंठा मत पालो जी और चाहे जो पालो!
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"सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"
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क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
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संपादक : सरस पायस
गांव की यादों का बहुत सुंदर वर्णन .. इतनी अच्छी रचना के लिए बधाई !!
शहरी होकर भूल न पाया
मीठी यादें गावं की
-ये कैसे कोई भूल सकता है!!
बेहतरीन रचना!
कुछ शहरी यादों में पाया
खारापन या एक दिखावा
शहरी होकर भूल न पाया
मीठी यादें गावं की
सच को बयां करती कविता .....स्वागत है आपका .....!!
बहुत प्यारी कविता!!
आपकी सोच आपकी भावनाएं, यकीनन दादे-तहसीन हैं!!
कभी फुर्सत मिले तो shahroz_wr@yahoo.com पर संपर्क करें, ख़ुशी होगी!
कुछ शहरी यादों में पाया
खारापन या एक दिखावा
ईंट पत्थर के शहर और देर भी क्या सकते हैं ........... दिखावे के सिवा ... बहुत उम्दा ...........
अपनी सहजता को यूँ ही बरक़रार रखियेगा,बहुत सुन्दर लिखा है.
शुभकामनाये.
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