Tuesday, February 2, 2010

एक तुम हो जो निश्चिंत हो दुनिया के भीड़ में गुम

कल माँ की अचानक तबियत ख़राब होने के कारण उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा..
कल दिन भर एक मायूसी छाई रही... कई बार सोंचा चिंता न करूँ सब ठीक हो जायेगा मगर चिंताएं दस्तक कहा देती धडधडाते हुए
मन मस्तिस्क पर छाती रही...
ऐसे तो मै चार भाई बहनों में तीसरे नंबर पर हूँ मगर माँ ने मुझे जयादा प्यार दिया क्यों की भैया भाभी और दोनों बहने मुंबई में अच्छी तरह से सेटल हें..और मै माँ के साथ बोकारो में ..शायद यही वजह है माँ से ज्यादा प्यार पाने का..
भैया भाभी बहन बहनोई सभी मेरे बिवाह को लेकर प्रतेक दिन फ़ोन पर दो चार चर्चाएँ कर हीं लेते हें ..खैर

हॉस्पिटल में माँ को नींद का इंजेक्सन दिया गया था और वो एक कृतिम नींद के आगोश में सो रही थी.माँ अगर जागती रहती तो मेरा समय कट जाता मगर मुझे अपने समय को बिताने के लिए कुछ करना था ...

मुझे लगा अपनी चिंताओं से बहार आने का सबसे अच्छा साधन यही है की मै उसके बिषय में सोंचू जिससे मेरा बिवाह होगा ..
ये अलग बात है की मेरा बिवाह किसके साथ होगा ये भविष्य के गर्भ में छुपा है ..

इन्ही सोंच में कुछ शब्द पंक्तियों में एवं पंक्तियाँ कविता का रूप धारण करती गयी ....

आपके सामने है मेरी वो कविता जो शायद मेरी पत्नी (जिन्हें मै जनता भी नहीं ) के लिए लिखी गयी पहली कविता है.

एक तुम हो
जो निश्चिंत हो
दुनिया के भीड़ में
गुम..
एक मै हूँ
मेरी कल्पनाएँ
और उन कल्पनाओं में
तुम

एक तुम हो
जो खा जाती हो
मेरे हिस्से के
काल्पनिक
दुखों को
एक मै हूँ
जो हर सुख में
तुम्हारा हिस्सा
रखता हूँ..

एक तुम हो
जो सजाते हो
किसी के आने की
ख़ुशी में
शहर को
एक मै हूँ
जो तलाशता हूँ
सदेव
तुम्हारे घर को..

एक तुम हो जो
नए राग में
मिल जाते हो
और मै सर धुनता हूँ
एक मै हूँ
जो हर पग पर
रुक कर
तुमको सुनता हूँ...

एक तुम हो
रंगों से बेपरवाह
खोये रहते हो
अपनी दुनिया में
एक मै हूँ
जो गुलाबों से
रंग चुराता हूँ
तुम्हारे चूड़ियों को
रंगने के लिए...

एक तुम हो
जो निश्चिंत हो
दुनिया के भीड़ में
गुम..
एक मै हूँ
मेरी कल्पनाएँ
और उन कल्पनाओं में
तुम..


मेरी जीवन संघनी इसे पढ़ कर कैसा महसूस करेंगी..
अगर आप इसका अंदाज़ा लगा पा रहें हों तो मुझे अवश्य बताइयेगा ..

माँ के लिए आप सभी के दुआ के जरुरत है...

--अरशद अली---

5 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एक तुम हो
जो खा जाती हो
मेरे हिस्से के
काल्पनिक
दुखों को
एक मै हूँ
जो हर सुख में
तुम्हारा हिस्सा
रखता हूँ..
बहुत सुन्दर अरसद भाई , मैं भी खुदा से यही दुआ करूंगा कि आपकी माँ जी को शीघ्र स्वास्त्य लाभ हो और वे जल्दी हास्पीटल से अपने घर पहुंचे !

Arshad Ali said...

godiyal sahab
aapka bahut bahut dhanyawad aapki dua
maa ko ghar lane me meri madad karegi

tatkat tippani ek asim khushi de gayi..
maa pahle se behtar hay..

punah dhanyawad.

दिगम्बर नासवा said...

एक तुम हो
जो खा जाती हो
मेरे हिस्से के
काल्पनिक
दुखों को
एक मै हूँ
जो हर सुख में
तुम्हारा हिस्सा
रखता हूँ....

अरशद साहब ......... आपकी होने वाली पत्नी आपके अनुरूप हो ऐसी कामना है ......... बहुत ही सुंदर कल्पना है आपकी ........

Udan Tashtari said...

माँ दीर्धायु हों..यही मंगलकामना है.

Kulwant Happy said...

वो कैसा महसूस करेगी..सवाल वो नहीं

सवाल ये है कि तुम ने क्या महसूस किया।

वो झलकता है...प्रेम की सुगंध आ रही है।

इस प्रेम को खुद सदैव बनाए रखे}

ये कविता तुम्हारे सच्चे दिल की आवाज हो

न केवल संघनी खुश करने की चेष्टा।