रात जगा तो जगी रही सभी भावनाएं, कई बार शोर में जगा तो कई बार ख़ामोशी ने नींद में खलल डाली। जागना अच्छा था, सो जाता तो क्या पाता ....?
आखिर नींद उचट क्यों जाती है? उम्र होने पर ऐसा होता तो चलो कोई बात भी हो मगर ये गुमान भी तो नहीं पाल सकता। इसी क्रम में टेलीविज़न पर उसे देख रहा था , रेगिस्तान में नए रास्तों को खोजते हुए , पहले भी देखा है उसे यूँ हीं पागलपन के हदों को छूते हुए… बड़ा कटु जीव है… साँप तक खाने से गुरेज़ नहीं उसे , जीने के कई हतकंडे अपनाता है… अंत तक नज़र गड़ाए देखता रहा। कभी-कभी ऐसा लगा अपनी ज़िन्दगी भी कुछ ऐसी हीं है और मुश्किल घड़ी में हत्कन्डों को अपनाना जीवन जीने कि एक शैली है। हमें भी अपना चाहिए। नींद नहीं आने के कारणों में एक कारण भटकाव को भी मानता हूँ और भटकाव से बचने के लिए स्पष्ट चिंतन आवश्यक है। चिंतन के लिए एकाग्र होना पड़ता है। संसाधनों के बीच एकाग्र होना थोडा कठिन लगता है अंदर झाकना भी तो नहीं आता ऐसा भी होता तो भटकाव से बचा जा सकता था। एक सच्चाई ये भी माननी पड़ेगी कि चैन की नींद उसे मिलती है जो सोने से पहले तक अपने शारीर और मन से थक चूका होता है… अब उसे चारपाई पर सुलाओ या ज़मीन पर। नींद नहीं आना एक संकेत है उलझन का और उस उलझन में दिल कहाँ लगता काम में , इंसानी कामों को बाटने का एक सरल तरीका किसी बाबा ने सालों पहले बतलाया था।
कुछ काम अपने लिए करना होता है कु छ काम दूसरों के लिए, ताल-मेल बैठाना इन दोनों प्रकार के कामों में बाबा जी ने बतलाया हीं नहीं। तब से हीं बाबा जी को ढूंढ रहा हूँ। अमुक बाबा जी हों या
लापता नींद ढूँढ लेना इतना आसान नहीं। कोई तरीका होता तो नींद कि गोली क्यों खाता।
अब समाधान ढूंढने के लिए सुबह का इंतज़ार करना था। और मुई नींद भी दवा के असर के साथ थी कच्ची-पक्की अज़ीब सी, आई-आई नहीं भी आयी और एक प्रश्न का जन्म हुआ , उत्तर सभी को चाहिए, आखिर ऐसा मेरे साथ हीं क्यों होता है?
बाथरूम के नल से टपकती पानी के बूंद के शोर को दोषी बनाने कि पूरी तैयारी हो चुकी है । अब एक आरोप लगाना है शायद ऐसे हीं मन को बहलाना है । पक्का मन बहलते हीं नींद आ जायेगी इसी इंतज़ार में जगा जगा सा मै ……।
अरशद अली
आखिर नींद उचट क्यों जाती है? उम्र होने पर ऐसा होता तो चलो कोई बात भी हो मगर ये गुमान भी तो नहीं पाल सकता। इसी क्रम में टेलीविज़न पर उसे देख रहा था , रेगिस्तान में नए रास्तों को खोजते हुए , पहले भी देखा है उसे यूँ हीं पागलपन के हदों को छूते हुए… बड़ा कटु जीव है… साँप तक खाने से गुरेज़ नहीं उसे , जीने के कई हतकंडे अपनाता है… अंत तक नज़र गड़ाए देखता रहा। कभी-कभी ऐसा लगा अपनी ज़िन्दगी भी कुछ ऐसी हीं है और मुश्किल घड़ी में हत्कन्डों को अपनाना जीवन जीने कि एक शैली है। हमें भी अपना चाहिए। नींद नहीं आने के कारणों में एक कारण भटकाव को भी मानता हूँ और भटकाव से बचने के लिए स्पष्ट चिंतन आवश्यक है। चिंतन के लिए एकाग्र होना पड़ता है। संसाधनों के बीच एकाग्र होना थोडा कठिन लगता है अंदर झाकना भी तो नहीं आता ऐसा भी होता तो भटकाव से बचा जा सकता था। एक सच्चाई ये भी माननी पड़ेगी कि चैन की नींद उसे मिलती है जो सोने से पहले तक अपने शारीर और मन से थक चूका होता है… अब उसे चारपाई पर सुलाओ या ज़मीन पर। नींद नहीं आना एक संकेत है उलझन का और उस उलझन में दिल कहाँ लगता काम में , इंसानी कामों को बाटने का एक सरल तरीका किसी बाबा ने सालों पहले बतलाया था।
कुछ काम अपने लिए करना होता है कु छ काम दूसरों के लिए, ताल-मेल बैठाना इन दोनों प्रकार के कामों में बाबा जी ने बतलाया हीं नहीं। तब से हीं बाबा जी को ढूंढ रहा हूँ। अमुक बाबा जी हों या
लापता नींद ढूँढ लेना इतना आसान नहीं। कोई तरीका होता तो नींद कि गोली क्यों खाता।
अब समाधान ढूंढने के लिए सुबह का इंतज़ार करना था। और मुई नींद भी दवा के असर के साथ थी कच्ची-पक्की अज़ीब सी, आई-आई नहीं भी आयी और एक प्रश्न का जन्म हुआ , उत्तर सभी को चाहिए, आखिर ऐसा मेरे साथ हीं क्यों होता है?
बाथरूम के नल से टपकती पानी के बूंद के शोर को दोषी बनाने कि पूरी तैयारी हो चुकी है । अब एक आरोप लगाना है शायद ऐसे हीं मन को बहलाना है । पक्का मन बहलते हीं नींद आ जायेगी इसी इंतज़ार में जगा जगा सा मै ……।
अरशद अली
2 comments:
sabke sath aaj yahi samasya hai aur sab apne ko hi ankhokha insan samjhkar pareshan hain .nice post .
beautiful
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