Friday, January 1, 2010

एक जनवरी,वर्ष का पहला दिन (एक चिंतन)

आज मोबाईल की हालत ठीक नहीं बधाइयों का ताता लगा हुआ है.चन्द्र ग्रहण भी चर्चा में है.झारखण्ड में सोरेन सरकार अलग उत्सव मना रही घर से कुछ दूर पर लडकें माइक पर गाना बजा रहे हें.दूध वाले ने दूध नहीं भेजवा कर चाय की आफत कर रखी है.
टेलीबिजन रात से रंगारंग बना हुआ है.न्यूज़ पर पता चला की गत रात्रि नववर्ष के उत्सव में एक ठुमका पर बंगाली बाला को दो करोड़ मिल गए.घूम घाम कर ब्लॉग की दुनिया में आया तो पुनः नववर्ष की बाधायों से भींगने लगा.मेरी भी इच्छा हुई की वर्ष के प्रथम दिन जो भी अनुबव किया लिख दूँ .

चौराहे के बगल के झुग्गी में
बड़ी शोर था
जहाँ कल तक सन्नाटा
पसर रहा था
जश्न था,धूम था,
नववर्ष के उत्सव का
असर रहा था

मंदिर के पास के
ए.टी.एम में कतार लगी थी
एक छोटी भिखमंगी
खाने के लिए
पैर छू छू कर
एक रूपया मांग रही थी

राजनैतिक स्थिरता में
अवसर निचोड़ा जा रहा था
कारखाने के द्वार पर
बिस्थापितों को नौकरी
के नाम पर
एकता के रस्सी में
जोड़ा जा रहा था

मनचलों की भीड़
नाचते गाते
सड़क के बीचों -बीच
जा रही थी
नयी पीढ़ी ज़बरदस्त
पिकनिक मना रही थी

अखबार नववर्ष की
शुभकामनाओं से
पटा पड़ा था
कहीं मुख्यमंतरी
कहीं राज्यपाल का
नववर्ष सन्देश
गढ़ा था

घर के सामने
रिक्शे वाले
नववर्ष की शुभकामनायें
बाँट रहे थे
संभवतः कल रात से
खाने पिने के
उनके ठाट रहे थे

घर की बाई
वर्ष के प्रथम दिवस पर
काम पर नहीं आने की
खबर भेजवाई थी
बहुत सज-धज कर
बच्चों के साथ
थोड़ी देर के लिए
बख्शीस लेने आई थी

सोंचा था आज का दिन
कुछ अलग होगा
मगर वही हुआ
जो होता आया है
दसक का पहला दिन
बीते बर्षों के
नियमों पर हीं बिताया है.


-अरशद अली-

1 comment:

Mithilesh dubey said...

बहुत खूब । हिन्दी ब्लोगिंग में आपका स्वागत है , ऐसे ही लिखते रहें , शुभकामना ।