Saturday, December 5, 2009

रोटी-कपडा और मकान





हर सुबह की तरह आज भी चाय की दुकान पर शर्मा जी मिले थे ,लम्बी लम्बी बातों में एक छोटा सा आग्रह भी करते जा रहे थे की यादव जी से अच्छा उमीदवार इस बार नहीं मिलने वाला आप सभी उन्हें हीं वोट दीजियेगा,उनको जितने से अपने शहर का भाग्य पलट जाएगा और पता नहीं क्या क्या ......खैर लोकतंत्र है सबको कहने के अधिकार के तहत शर्मा जी को भी हक है अपनी बात कहने का
मुझसे गलती यही हो गयी की मैंने पूछ लिया की आप यादव जी की बड़ी तरफदारी कर रहें हें कुछ माल पानी मिला है क्या?
फिर क्या था पहले तो उन्होंने दूसरा कप चाय मुझे जबरजस्ती हाँथ में पकडाया और लगे समझाने अपने बारे में ...बड़ी भावुक होकर कहने लगे आज इतने दिनों से इस शहर में हूँ,अच्छे -अच्छे घुस वाले टेबल पर रहते हुए भी अपनी ईमानदारी को बचा कर रखा आपको क्यों लगता है की मैंने यादव जी से पैसा लिया है . इस शहर के नेताओं से मेरी जान पहचान है .यहाँ तक की आप मेरे ऑफिस में मेरे बारे में पता लगवा लें,मैंने कभी भी गलत तरीके से पैसा कमाना नहीं चाहा अगर कोई भी कह दे की शर्मा जी ऐसे हें तो आप जो कहें मै तैयार हूँ.
मैंने शर्मा जी से माफ़ी मांग लेना हीं बेहतर समझा मेरी इच्छा उनको दुखी करने का नहीं था.मुझे भी पता था शर्मा जी वास्तव में एक अच्छे इन्सान हें.
मैंने उनसे आग्रह किया की आप लोगों के दर्द को समझते हें, इमानदार हें,लोगों में आपकी अच्छी पहचान भी है, राजनीति की पकड़ भी है, आप अपने को एक नेता के रूप में क्यों नहीं ढालते.सच मानिए सारे पढ़े लिखे लोगों का वोट आपको हीं मिलेगा और मुझे उम्मीद हीं नहीं पूर्ण विश्वास है की आप अपने शहर के विकास के लिए सबसे योग्य नेता होंगे.
शर्मा जी लम्बी सांस भरते हुए,नहीं साहब राजनीति हम लोंगों के लिए कहाँ.......
रोटी कपडा मकान के मुद्दों से जहां अपना समाज वंचित है वहां अलग अलग मुद्दों पर विकास लाने की बात मुझसे नहीं होने वाली
मैंने शर्मा जी से पूछना ज़रूरी समझा , क्या अपने यादव जी एक अच्छे नेता हें?.
शर्मा जी झेपते हुए इतना हीं कह पाए
जनाब इलेक्शन से पहले के कुछ दिन अजीब होतें हें.
गुंडों से दिखने वाले नेताओं को भी हाँथ जोड़े होडिंग्स पर देखने में मज़ा तो आपको भी आता हीं होगा मगर आँखों की ठंडक कानों में पड़ने वाली आवाजों से गायब भी हो जाती होगी.मुद्दों के समंदर में जनता भी अपने रोटी,कपडा,मकान की जरूरतों को सुलझाने में खुद को बिफल महसूस करती है मगर नेताओं को क्या फर्क पड़ता है, कई नेताओं में यादव जी भी हें
वो क्या करेंगे ये तो उन्हें भी नहीं पता मगर
नेता जी को जितना तो होगा हीं भले हीं वादों की बाढ़ में हम सब प्यासे हीं रह जाएँ.

दो कप चाय और एक टुक शर्मा जी की बात मेरी नींद उड़ाने को काफी थे .

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