किसान को धुरी पर बैलों को घुमाकर धान से चावल के दाने तक आने में.
गेहूं को चक्की के पाट में डाल कर दादी को चक्की घुमाने में.
कुम्हार को चाक पर मट्टी डाल तन्मन्यता से बर्तन बनाने में
संतुष्टि अवश्य प्राप्त होती होगी सभी को ईश्वर के चक्र को दुहराने में.
सभी चक्र समय के चक्र जैसा परिणाम देकर ईश्वर की महत्ता प्रदर्शित करता है.
दिन-रात का चक्र भी प्रारंभ से दादी की चक्की जैसा चलता रहता है.
और इसी चक्र में जन्म-मृत्यु सहज घटित हो जाते हें
जन्म का उत्सव ,मृत्यु का शोक जन्म से मृत्यु तक हम जाने कितनी बार मानते हें.
और प्रत्येक प्रारंभ में एक अंत छुपा होता है.
चक्र के चक्रव्यूह में चक्कर अन्नंत होता है.
और इन्ही चक्रों को चलने में मनुष्य जन्म से जुट जाता है
चक्र पूर्ववत चलते रहते हें अंततः जीवन चक्र टूट जाता है.
और इन चक्रों को पुनः कोई और चलता है.
ईश्वर का सब चक्र किसान के बैलों के चक्कर, दादी की चक्की,कुम्हार के चाक
के जैसा या उसी रूप में चलता जाता है...............................
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