Thursday, December 24, 2009

शब्दों के चित्र

जो चाहता था हुआ नहीं.जो हुआ पर्याप्त नहीं
आशा निराशा की इस गुत्थम-गुत्थी में जित किसी की नहीं
मानसिक लड़ाइयों में अंत की कामना करते हीं
स्थितियां नयी लड़ाई की पृष्ठ भूमि तैयार करता गया
कभी हार कभी जित चक्र बस चलता गया ..........


शब्दों का रंग
कागज पर पड़ते हीं
फिर से मै बन गया चित्रकार
और लग गया
भावनाओं का चित्र बनाने में
क्रंदन में एक पीलापन था
चित्रकार के इच्छा के बिपरीत
और काले रंग में उत्सव को गढ़ कर
सभी रंगों के शब्दों को देखा
उसके अर्थो से कोसों दूर
कई लकीरें खीचा
शब्दों से
सब तर्क बिहीन
पर धब्बों जैसे पसरे रंगों में
अर्थ ढूंढते आखों में
आशाओं का एक प्रतिबिम्ब था
चित्र जो भी शब्दों ने उकेरा
उसके रंगों में एक बंधन था
सब उलझे थे आपस में
क्रंदन, उत्सव
पीड़ा,हर्ष
पर भावनओं के चित्रण में
कम पड़ गए बीते वर्ष .

1 comment:

Udan Tashtari said...

क्रंदन, उत्सव
पीड़ा,हर्ष
पर भावनओं के चित्रण में
कम पड़ गए बीते वर्ष .

-क्या बात है, आप बहुत भावपूर्ण लिख रहे हैं.


क्या आप ब्लॉगवाणी/ चिट्ठाजगत पर है?? यदि नहीं, तो सूचित करें..मैं करा दूँगा. हिन्दी के पाठक वहीं से आपकी पोस्ट देख कर आते हैं अधिकतर.