Tuesday, December 22, 2009

मीठी यादें गावं की

शहरी रंग बेरंग से
धूसर मिटटी गावं की
धुप शहर की शूल सरीखी
इच्छा आम के छाव की

हाय-हेलो की चकाचौंध में
स्पर्श बड़ों के पावँ की
अंग्रेजी के कावं-कावं में
मीठी बोली गावं की

शाम की बर्गर,रात की पिज्जा
पानी पूरी कोको कोला
दाल-भात में चोखा-चटनी
खाना मेरे गावं की

रिश्तों के भटकाव में
बचपन कुंठा पाल रहा
चाचा- चाची बुआ दादी
याद कराते गावं की

शहर के चौराहों पर
झूठी शान हजारों के
गावं में देखा है मैंने
कांख में चप्पल पावं की

च हु ओर एक शोर शराबा
तन्हा-तन्हा सारे लोग
एक तन्हाई मिल न पाई
खाख जो छाना गावं की

कुछ शहरी यादों में पाया
खारापन या एक दिखावा
शहरी होकर भूल न पाया
मीठी यादें गावं की